बेतहासा बढ़ती महंगाई, मुनाफाखोरों ने बढाई
मनोज कुमार सिंह प्रवक्ता बापू स्मारक इंटर कॉलेज दरगाह मऊ
बेतहाशा बढती महंगाई का सारा मक्खन सारी मलाई मुनाफाखोर जमाखोर और कमीशनखोर खा जाते हैं, किसानो के हक मे आता है चवन्नी अठन्नी और आम आदमी के नसीब में महंगी सब्जी और महंगा खाद्यान्न मिलता है। एक स्वस्थ्य अर्थव्यवस्था के लिए 2 --6 प्रतिशत मंहगाई दर शुभ संकेत होती हैं । इतना उतार-चढ़ाव अर्थव्यवस्था के लिए सकारात्मक संकेत है। परन्तु वर्तमान समय में मंहगाई दर 7दशमलव 33तैतीस प्रतिशत है , इसमें भी खाद्यान्न पदार्थों में चौदह प्रतिशत और सब्जी में लगभग इक्कीस प्रतिशत है। आम तौर पर यह धारणा है कि खाद्यान्न पदार्थों और फल सब्जियों के दाम में बेतहाशा वृद्धि से किसानों और सब्जी उत्पादकों का लाभ होता हैं । परन्तु यह धारणा सतही संकुचित पूर्वाग्रह से ग्रसित और व्यापक और समग्र जानकारी के अभाव के कारण है । अपने खून पसीने से खाद्यान्न पदार्थों और फल सब्जियों को उगाने उपजाने वाले किसान अपनी दैनन्दिन आवश्यकताओ और भावी योजनाओ की आवश्यकताओं के कारण अपनी खाद्यान्न फसलों फलों और सब्जियों को खेत से ही औने पौने दाम पर बेचने के लिए विवश होते हैं। अपनी तमाम आवश्यक आवश्यकताओं के कारण उनकी बाजार में सौदेबाजी की स्थिति बहुत कमजोर होती हैं। प्रतियोगी प्रतिस्पर्धी खुले बाजार में सौदेबाज़ी में किसानों की कमजोर स्थिति का थोक बिक्रेता और आढतिया भरपूर उठाने का प्रयास करते हैं। किसान के खेत से आलू टमाटर परवल बोडो और खाद्यान्न पदार्थों को बहुत कम दाम पर थोक बिक्रेता और आढतिया खरीद लेते हैं और जमाखोरी और कालाबाजारी के बल पर भारी मुनाफा कमाते हैं। प्रकारांतर से बेतहाशा मंहगाई वृद्धि का लाभ थोक बिक्रेता और आढतिया जमाखोर और कालाबाजारी उठाते हैं, और खून पसीना बहाने के बावजूद मेहनतकश किसान किसी तरह अपना लागत मूल्य निकाल पाता है।मुनाफाखोरी जमाखोरी और कालाबाजारी की प्रवृत्ति ,कुसंस्कृति और कुव्यवस्थाओ को पूरी तरह से ध्वस्त करने के लिए सरकारों को प्रभावी कदम उठाना चाहिए। पारदर्शी और स्वस्थ्य बाजार व्यवस्था के परिवेश और वातावरण में ही किसानों को उनकी बहुविवीध फसलों का लाभ और आम आदमी को सस्ते दर खाद्यान्न पदार्थों और फल सब्जियों को सस्ते दर पर उपलब्ध कराया जा सकता हैं। सरकारो द्वारा जमाखोरी कालाबाजारी और बढते हवाला कारोबार पर प्रभावी नियंत्रण स्थापित न कर पाने के कारण आज खेती किसानी घाटे का सौदा होती जा रही है। छोटी जोत के किसानों के सामने जीवन निर्वाह की समस्या गम्भीर होती जा रही है। स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों से देश के किसानों में कुछ उम्मीद जरूर जगी थी परन्तु हर राजनीतिक दलो द्वारा हर चुनाव में वादा करने के बावजूद आज भी स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट धूल फाँक रहीं हैं। स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को सच्ची नियति और ईमानदारी से लागू कर देश के अन्न्दाताओ के चेहरे पर मुस्कान लाई जा सकती है। विश्व की विशाल जनसंख्या वाले अपने देश में कृषि ही ऐसा क्षेत्र है जिसमें अधिकतम लोगों के लिए रोजगार की सम्भावनाएं है और कृषि को उद्योग का दर्जा देकर अधिकतम लोगों के लिए रोजगार के अवसर विकसित किए जा सकते है। स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों में इस तरफ स्पष्टतः संकेत किया गया है। इस देश में आज भी 66 प्रतिशत आबादी का जीवन कृषि कार्य पर निर्भर है। इसलिए कृषि कार्य पर निर्भर लोगों की क्रय शक्ति बढाकर बाजार की रौनक और चमक-दमक बढा सकते हैं। खेती किसानी और किसान को मजबूत किए बिना देश को मजबूत नहीं किया जा सकता है।