दिल्लगी न सही बस दिल को ही लग जाए..सम्पादकीय
सम्पादकीय जगदीश सिह सम्पादक
*दिल्लगी न सही बस दिल को ही लग जाए*! *उस हसीन चेहरे की एक मुस्कान ढूंढ रहा हूं*! *आजाद तो है फिर भी गुलामी सी लगती है*! *वह सोने की चिड़िया वाला हिंदुस्तान ढूंढ रहा हूं*? गम भरी दुनिया में हर पल ख्वाहीशो की पूर्णता की चाहत लियेआदमी दर दर भटक रहा है न कहीं शुकून है न चैन है! हर वक्त दिल बेचैन है! रफ्ता रफ्ता समय मन्थर गति से मन्जिल के तरफ सरक रहा है! हर रोज ख्वाबों का महल दरक रहा है!यह सदी जिस भयानक त्रासदी के साथ अट्टाहास कर रही है! वह इन्सानी बस्तियों मे हुयी तबाही का बिकृत इतिहास भी बना रही है। हर तरफ सन्नाटा है! कदम कदम पर इम्तिहान ले रहें बिधाता है! करोना का कहर तमाम लोगों की जिन्दगी में जहर भर दिया है! दहशत के साये में जिन्दगी फजीहत झेल रही है! मौत दबे पाँव रोजाना हमला कर रही है! जब तक लोग सम्हलते सांसे उखङ जा रही है। चाहकर भी लोगो की परवाह करना मुश्किल हो गया है।आये है इस जँहा में तो जीना ही पङेगा !जिन्दगी जहर है तो पीना ही पङेगा! हालात यही बन गये है।गाँव का गाँव बीरान हो गया! सुनसान खेत खलिहान हो गया !कभी सोने की चिङीया कहा जाने वाला देश बदलते परिवेश में तबाही का जगह जगह छोङ रहा है निशान! पहले वाला कहाँ रह गया है हिन्दुस्तान! जिधर देखिये मायूसी भरा माहौल, अस्पतालो में मौत का कोलाहल! जहरीला होता जा रहा है आदमी पूरे शरीर में बिष भर गया है हलाहल?। सामाजिक समरसता बिषमता के बिषाक्त आवरण में पर्यावरण के प्रदुषण से मर्माहत आहत होकर समापन के तरफ तेजी से बढ रहा है।भारत की पुरानी परम्परा इस धरा पर कल की बात बन कर रह गयी है।आधुनिकता के चपेट में आकर नैतिकता को लोग त्यागते जा रहें है! रोजाना रिश्ते कलंकित हो रहे है! अखबारो के समाचार को पढकर लोग चकित हो रहे है! अचम्भित हो रहे है।क्या जमाना आ गया है दोस्तो! घर परिवार नातेदार रिश्तेदार सबके के सबके उपर चढकर नाच रहा है कलयुगी भरष्टाचार! अब न कही बिचार रहा न शिष्टाचार रहा! न आपसी ब्यवहार रहा! मतलब परस्ती की मस्ती मे मशगूल हर आदमी खुद का अहम पाले हुये है।थोङा सा पंख जमा घर बार पराया हो गया जीवन भर का प्यार दुलार मा की ममता बाप का दुलार पल भर मे कल के लिये बकाया हो गया! जो कल तक कुछ नही था वही हम साया हो गया। जीवन मे उतार चढाव का दौर तो आना स्वाभाविक है लेकीन आदमी मुसीबत के समन्दर का होन हार नाविक है! जीवन की कश्ती को सलीके से कीनारे लगाने का हूनर जानता है !तभी तो हर क्षण परवरिश की बर्षात मे भीग कर भी अपनी जिम्मेदारियो का बोझ उठाते हुये कश्ती को साहील तक पहुचाने का अथक प्र्यास करता है! लेकीन दुर्भाग्य से जीवन की कश्ती पर सवार मुसाफीर ही मझधार में पतवार की दिशा मोङ दे तो दुर्घटना तो होना ही है।मौत की लहरों से खेलने वाले नाविक को तो रोना ही है। आजकल हालात ऐसे ही बनता जा रह है! दुर्ब्यवस्था का दौर चल रहा है! हर आदमी के दिल मे नफरत पल रही है।सम्बन्ध के धरातल पर प्रतिबन्ध का प्रदुषित पानी भरता जा रहा है।बिषमता के बहाव मे भाई चारगी का अभाव हर जगह दिखाई दे रहा है। भारत की गौरवशाली परम्परावादी ब्यवस्था जो आस्था के सानिध्य मे रहकर समरसता समता सहृदयता समानता का पूरी दुनिया में उदाहरण हुआ करती थी सम्बद्धि सदाचार ब्यवहार के चलते ही मशहूर था सारे जहाँ से अच्छा हिन्दुस्तां हमारा!बिश्व गुरू के खिताब से सम्मानित था यह हमारा देश! आज इसका परिवेश बदल गया ! पुरातन भारत बिलुप्त हो गया! परम्परावादी बाजारों का बिलोपन हो गया !यथार्तबादी आस्था दुर्ब्यवस्था की शिकार हो गयी! पूंजीपतियों के हाथो गुलाम बर्तमान सरकार हो गयी! आने वाला वक्त अखंङ भारत के स्वप्न् को सजाये बिभक्त होता नजर आ रहा है।पुरात कर्म सच्चा सत्कर्म का लगातार क्षरण हो रहा है! आपसी ताल मेल का खेल भी बिगङता जा रहा है जाति बिरादरी धर्मसमप्रदाय के नाम पर इन्सानियत का चीरहरण हो रहा है! साम्प्रदायिक सौहार्द कलुषित मानसिकता के आवरण में बिकृति भरा वातावरण तैयार कर रहा है! बर्तमान जिस तरह से आने वाले कल की यैयारी कर रहा है वह कही से भी सामयिक नही लग रहा है! सियासत के बाजार में दुराचार;अनाचार, दुर्ब्यवहार, बलात्कार ,सस्ते भाव मे बिक रहा है !फीर भी भारत महान है! बदलते भारत का बैभवशाली बिकशित हिन्दुस्तान है! समय रहते सार्थक प्र्यास नही हुआ तो देश निरर्थक निगेटीव सोच से परिपूर्ण घटिया मानसिकता के प्रदुषित पर्यावरण मे बदल जायेगा ।दुनियाँ फीर इस देश को गुलाम देश कहना ही मूनासिब समझेगी भले ही आज हम बुलन्दी की बात करतें है लेकिनआने वाला कल अक्लमनादी का कत्तई नहीं आ रहा है।