बिजली के निजीकरण के खिलाफ संयुक्त किसान मोर्चा ने सौंपा ज्ञापन

4, जून, मऊ संयुक्त किसान मोर्चा ने उत्तर प्रदेश सरकार के बिजली के निजीकरण के खिलाफ़ व गरीबों के लिए बिजली की रियायती दरें बहाल करने, स्मार्ट मीटर वापस लेने,सभी ग्रामीणों को 300 यूनिट बिजली मुफ्त देने, ट्यूबवेल बिजली आपूर्ति 18 घंटे सुनिश्चित करने, सिचाई के लिए मुफ्त बिजली देने की मांग को लेकर जिला मुख्यालय पर किया प्रदर्शन।राज्यपाल को सम्बोधित सात सूत्रीय मांग पत्र जिला प्रशासन को सौप.

वक्ताओं ने कहां कि उत्तर-प्रदेश सरकार द्वारा बिजली के निजीकरण का फैसला किसान ही नहीं, तमाम मेहनतकश जनता के खिलाफ है। खुद बिजली कर्मचारी लम्बे समय से इसके खिलाफ आन्दोलन कर रहे हैं।देश में हर जगह किये गये बिजली के निजीकरण ने भारी घाटा पहुंचाया है। इससे बिजली बेहद महँगी हुई है और बिजली उत्पादन और वितरण का बेशकीमती ढाँचा निजी कम्पनियों के कब्जे में चला गया। जिन राज्यों में बिजली निजी कम्पनियों के हाथों में है, वहाँ इसकी दर 17 रूपये प्रति यूनिट तक है। उत्तर-प्रदेश में ही 2009 में आगरा में बिजली वितरण टोरेंट को दिया गया था। 2023-24 में टोरेंट को पावर कारपोरेशन ने 4.36 रुपये प्रति यूनिट की रियायती दर पर बिजली सप्लाई की, जिसे वह खुद 5.55 रु0 प्रति यूनिट की दर से खरीद रही थी, जिसमें उसे 275 करोड़ रुपये का सालाना घाटा हुआ। टोरेंट ने यही बिजली उपभोक्ताओं को 7.98 रुपये प्रति यूनिट की दर से बेची और 800 करोड़ रुपये का लाभ कमाया। विगत 14 वर्षों में टोरेंट के कारण पावर कारपोरेशन को 2434 करोड़ रुपये की क्षति हुई। इसके अलावा टोरेंट ने 2200 करोड़ रुपये का पिछला बकाया भी आगरा में वसूला। बिजली उत्पदान व विरतरण का सारा ढाँचा जनता की गाढ़ी कमाई से, सरकार द्वारा तैयार किया गया है। इसलिए उस समय के शासकों ने वादा किया था कि बिजली को बिना लाभ-हानि के सभी को मुहैया कराएंगे। इसे निजी कम्पनियों और सरकारों के कब्जे से मुक्त रखा गया और इसके संचालन के लिए अलग-अलग केन्द्रीय विद्युत प्राधिकरण और राज्यों के बिजली बोर्डों का गठन किया गया। उत्तर-प्रदेश में साल 2001 में बिजली निगमों का घाटा केवल 77 करोड़ रूपये था जो अब बढ़कर एक लाख करोड़ से ज्यादा हो गया है। इसके अलावा इस दौर में कई सरकारी विद्युत उत्पादन संयत्र कम्पनियों को बहुत सस्ते दाम पर बेच दिये गए हैं। सरकारीे वित्तीय संस्थानों ने उन्हें सस्ते लोन दिये हैं, राज्य सरकारों ने किसानों की जमीन सस्ती दरों पर अधिग्रहण करके दी हैं, वे हमारी नदियों से बिना किसी पेमेन्ट के करोड़ों लीटर पानी रोजाना उठाती हैं जिससे क्षेत्र का जलस्तर तथा खेती प्रभावित हो रहे हैं। तब भी राज्य सरकार उनसे महंगी बिजली खरीद रही है। उत्तर प्रदेश में अक्टूबर 2024 में निजी कम्पनियों से 17 रूपये यूनिट की दर से 2.3 करोड़ यूनिट बिजली खरीदी गयी, जबकि उस समय राज्य के पन-बिजली केंद्र 1 रुपया और एनटीपीसी 4.78 रूपये यूनिट की दर से बिजली पैदा कर रहे थे। ऐसी खरीद से बिजली निगमों को हर साल 10,000 करोड़ रूपये का नुकसान हो रहा है। निजी बिजली उत्पादन कम्पनियां बड़े पैमाने पर बहुत महंगे दामों पर ईंधन और उपकरणों की खरीद में फर्जीवाड़ा कर बिजली का दाम बढ़ाते रहे हैं। 2017 में कैग ने अदानी और एस्सार समूह के बिजलीघरों में इसी तरह का 600 करोड़ रूपये का फर्जीवाड़ा पकड़ा था। उससे पहले दिल्ली में रिलायंस समूह द्वारा महंगे उपकरण लगाकर दाम बढ़ाने की बात सामने आई थी। ऐतिहासिक किसान आन्दोलन ने विश्व बैंक के निर्देश पर बनाया गया बिजली कानून, जिसमें ग्रामीणों व गरीबों को रियायती दर पर बिजली की आपूर्ति समाप्त की गयी, को रद्द करने की माँग की थी। मोदी सरकार ने वादा किया था कि किसानों से मशवरा किये बगैर बिजली कानून में कोई संशोधन नहीं करेगी। लेकिन 2022 में सरकार ने राज्य सरकारों को बिजली के पूरे निजीकरण करने की अनुमति दे दी। बिजली के घाटे के लिए हमेशा गरीबों को दोष दिया जाता है। घाटे का सच तो यह है कि बिजली विभाग पर लगभग 1 लाख 10 हजार करोड़ रूपये के घाटा है। इसमें बहुत बड़ी रकम निजी कम्पनियों, बड़े कारोबारियों और रसूखदार लोगों पर बकाया है तथा 14,400 करोड़ रूपये सरकारी विभागों पर है। इसके अतिरिक्त करीब 10,000 करोड़ का घाटा निजी कारपोरेट घरानों से अत्यधिक महंगी बिजली खरीदने के कारण है। उत्तर-प्रदेश सरकार ने जिन पूर्वांचल और दक्षिणांचल बिजली निगमों के निजीकरण का फैसला किया है, उनका रिजर्व दाम मात्र 1600 करोड़ रुपये रखा है और उनकी सारी जमीनों को मात्र 1 रुपये प्रतिवर्ष की लीज पर जोड़ा है। इन निगमों की कुल सम्पत्ति कई हजार करोड़ रुपये की है। इस साल इन दोनों निगमों को उपभोक्ताओं से करीब 66,000 करोड़ रुपया का बकाया भी वसूलना है जिससे उन्हें करीब 20,000 करोड़ का मुनाफा होने का अनुमान है। सरकार इतने बड़े घाटे को अंजाम देने जा रही है। और इसकी कीमत कर्मचारी, इंजीनियर और आम उपभोक्ता चुकाएंगे। बिजली जनता की सम्पत्ति है क्योंकि यह जनता के प्राकृतिक संसाधनों से पैदा की जाती है। यह हमसे छीने जाते हैं। संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) बिजली विभाग के निजीकरण का विरोध करता है और बिजली कर्मचारियों के इस आन्दोलन का समर्थन का समर्थन करता है. प्रदर्शन मे प्रमुख रूप से अनुभव दास शास्त्री बाबूराम पाल रामजी सिंह बसंत कुमार राम नवल विश्वराज रामप्रवेश यादव सिकंदर सरोज सिंह बलवंत जयप्रकाश यादव अमरजीत विद्याधर कुशवाहा रामबली राजभर दुर्ग विजय राजभर गोकुल रामबदन बनवासी हीरा मुन्ना आदि शामिल रहे.



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