अनपढ़ ,असभ्य,बर्बर मानव बनाम आधुनिक ,सभ्य, सुसंस्कृत मानव

मनोज कुमार सिंह प्रवक्ता बापू स्मारक इंटर कॉलेज दरगाह मऊ

विज्ञान और जैव विकास की दृष्टि से मनुष्य इस बसुन्धरा पर जैविक विकास की पराकाष्ठा और कुदरत का सबसे शानदार करिश्मा है। इकलौता मनुष्य ही बसुन्धरा का एकमात्र प्राणी है जो इस धरती पर ज्ञान,प्रज्ञा,बुद्धि विवेक,बोध,तर्क,सोच,समझदारी, खोजी मस्तिष्क और विविध मानसिक शक्तियां लेकर पैदा हुआ है ऐतिहासिक दृष्टि से अवलोकन करने पर पता चलता है कि-धरती पर अवतरित आदिम युग का यह मनुष्य अपने जीवन के आरम्भिक दौर में बहुत भोला-भाला तथा उसकी आवश्यकताएं, इच्छाएं,आकांक्षाए और जीवन शैली सब कुछ अत्यंत सहज सरल थी। इतिहास के पन्नों में आदिम युग के इस भोले-भाले मानव को अनपढ़ ,असभ्य बर्बर और जंगली के रूप वर्णित, विश्लेषित और विभूषित किया गया है। प्रकृति की गोद में पूरी तरह मगन,आत्ममुग्ध और पूरी स्वतंत्रता के साथ विचरण करने वाले इस असभ्य अनपढ़ बर्बर जंगली मनुष्य का आरम्भिक पेशा शिकार और आखेटन था । विशुद्ध शिकारी जीवन-शैली वाले इस असभ्य अनपढ़ बर्बर जंगली मनुष्य ने महज जंगली जानवरों से सुरक्षा और शिकार करने के लिए पत्थर के अनगढ़ भद्दे बेडौल औजार बनाए । परन्तु आज वर्तमान दौर का आधुनिक सभ्य सुसंस्कृत मानव अपनी बुद्धि ,मेधा, प्रतिभा और कुशाग्रता के बल पर अनगिनत चमत्कार और आविष्कार कर रहा है । जिसमें सर्वाधिक चमत्कार और आविष्कार इस सभ्य सुसंस्कृत आधुनिक मानव ने युद्ध और लडाई और सामरिक क्षेत्र में किया है। स्वयं को सभ्य सुसंस्कृत और कहने वाले इस मानव ने जानवरों का शिकार करने के लिए नहीं बल्कि स्वयं को मारने मिटाने तबाह बर्बाद और तहस नहस के लिए अनगिनत अस्त्र शस्त्र, प्रक्षेपास्त्र मिसाइल युद्धक विमान तथा पलक झपकने के समय के समान पलभर में एक शहर या एक देश को तहस-नहस और पूरी तरह बर्बाद करने वाले परमाणु बम और हाइड्रोजन बम जैसे विस्फोटक हथियार बना लिये हैं । इस दौर की यही सबसे विडम्बना है कि-जिस मनुष्य ने महज जंगली जानवरों से सुरक्षा और शिकार करने के लिए केवल पत्थर के अनगढ़ भद्दे बेडौल औजार और हथियार बनाए उसे अनपढ़ असभ्य बर्बर जंगली कहा गया और आधुनिक दौर में एक दूसरे को मारने मिटाने के लिए अत्याधुनिक प्राणघातक हथियार बनाने वाला मनुष्य स्वयं को सभ्य सुसंस्कृत और आधुनिक समझता हुआ स्वयं पर इतरा और इठला रहा है । साथ ही साथ अनगिनत विनाशक, विध्वंसक और विस्फोटक अस्त्रों शस्त्रों का आविष्कार निश्चित और निर्विवाद रूप से मनुष्य की मनुष्य के प्रति निरन्तर बढती क्रूरता, निर्ममता,घृणा और हिंसक प्रवृति और भावना का द्योतक भी है । आदिम युग के अनपढ़ असभ्य बर्बर जंगली मानव के मन मस्तिष्क और हृदय में तेरे-मेरे का कोई भेदभाव नहीं था, प्रकारांतर से वह तेरे-मेरे के झगड़े झंझट से कोसों और मीलों दूर था । इसलिए धन धरती या अन्य किसी भी तरह की प्राकृतिक सम्पदा या दौलत के आपसी विभाजन के लिए न तो उसके मन मस्तिष्क और हृदय में कोई विभाजन रेखा थी और न धरती के किसी हिस्से पर उसने कोई विभाजन रेखा खींची। उस आदिम युग के अनपढ़ असभ्य बर्बर जंगली मनुष्य की सहज सरल समझदारी थी कि-प्रकृति में सब कुछ सबका है व्यक्तिगत कुछ भी नहीं है ,यही सिद्धांत सर्वत्र प्रचलित था । परन्तु इस दौर के आधुनिक सभ्य सुसंस्कृत मानव के मन मस्तिष्क और हृदय में एक दूसरे को लेकर ईर्ष्या द्वेष कलह कलुष जैसी अनगिनत दरारें है तथा वह व्यक्तिगत स्वार्थो और संकीर्णताओं से वशीभूत होकर आपसी विभाजन की अनगिनत रेखाएं खींच चुका है और जल थल और नभ में अपनी हिस्सेदारी सुनिश्चित करने के लिए निरंतर अनगिनत रेखाएं खींचता चला जा रहा है । आज दुनिया की जितनी आबादी है उतनी ही रेखाएं धरती पर खींची जा चुकी हैं और तेरे-मेरे का भाव पूरी निर्लज्जता और निर्ममता के साथ अपनी पराकाष्ठा पर पहुंच चुका है। आज एक बीत्ते नाबदान के लिए यह आधुनिक सभ्य सुसंस्कृत मानव इस कदर हिंसक है कि पूरे खानदान को मिटा देना चाहता है। इसी आधुनिक सभ्य सुसंस्कृत मानव की तेरे-मेरे की भावना ने पूरी मानवता को बीसवीं शताब्दी में दो विश्व युद्धों की आग में पूरी तरह झोंक दिया। इन दोनों विश्वयुद्धो की तबाही और बर्बादी का मंजर इस कदर वीभत्स था कि-उस घटना परिघटना का वर्णन करते समय इंसानियत का वर्णन करने वालो की रूह काँप जाती हैं। यह विचारणीय है कि -महज जंगली जानवरों को मारने वाला इतिहास में जंगली और बर्बर के रूप में वर्णित है जबकि दो विश्व युद्धों सहित अनगिनत युद्धों के माध्यम से अब तक लाखों करोड़ों लोगों का जीवन समाप्त करने वाला इस दौर का मानव आधुनिक सभ्य सुसंस्कृत कहलाता है। आदिम युग का अनपढ़ असभ्य बर्बर जंगली मनुष्य इतिहास में भूखा प्यासा नंगा भी कहा जाता है। इस ऐतिहासिक सच्चाई के साथ यह भी सर्वमान्य सच्चाई है कि- आदिम युग का भूखा प्यासा मनुष्य अपनी भूख प्यास मिटाने के लिए इधर-उधर जंगल दर जंगल भटकता रहा परन्तु अपने समान और समकक्ष मनुष्यों के साथ लडाई झगड़ा और दंगा-फसाद कभी नहीं किया। आज जमाखोरी मुनाफाखोरी काला बाजारी और भ्रष्ट कुप्रबंधन के कारण आधुनिक सभ्य सुसंस्कृत मानव पेट की भूख मिटाने के लिए लडाई झगड़ा और दंगा फसाद तक करने को तैयार रहता है। मुनाफे के लिए हजारों टन अनाज समुंद्र में फेंक दिया जाता हैं या गोदाम में सडा दिया जाता हैं। आदिम युग का अनपढ़ असभ्य बर्बर जंगली मनुष्य जमाखोरी मुनाफाखोरी कालाबाजारी जैसी बाजारवादी चालाकियों और धूर्तताओ से पूरी तरह अनभिज्ञ था। अनगढ़ असभ्य बर्बर जंगली मनुष्य कन्द मूल फल खाकर या जंगली जानवरों का शिकार कर अपनी भूख मिटा लेता था और नदियों झीलों का पानी पीकर अपनी प्यास बुझा लेता था और कभी-कभी भूखा भी रह जाता था परन्तु कभी भी लडाई झगड़ा और दंगा फसाद नहीं करता था। आज का आधुनिक सभ्य सुसंस्कृत मानव हवा पानी बिजली और अन्य उपहार स्वरूप प्रकृति प्रदत्त वस्तुओं के लिए अपने समान और समकक्ष मनुष्य का गर्दन काटने तक को तैयार है । मनुष्य ही इकलौता प्राणी है जो अपने उद्भव काल से ही अपने सीने में अपने जीवन को सहज,सरल ,सुखमय और बेहतर बनाने की चाहत लिए अपने बेहतर अस्तित्व और अस्मिता के लिए निरंतर संघर्ष करता रहा है उसकी सृजनात्मक रचनात्मक सकारात्मक प्रतिभा पराक्रम पौरूष दक्षता क्षमता कुशलता कुशाग्रता परिश्रम प्रयास प्रयत्न और पसीने के फलस्वरूप आज मानवता इस बुलन्दी तक पंहुची है। परन्तु शिकारी जीवन शैली से अपना जीवन आरंभ करने वाला मनुष्य कब शोषण की प्रवृत्ति का शिकार हो गया यह शोध और चिंतन मनन का विषय है। मनुष्य के मन मस्तिष्क और हृदय में आकंठ समाहित शोषण की प्रवृत्ति ने पूरी दुनिया को अपनी आगोश में ले लिया है और इसके कुत्सित परिणाम पूरी दुनिया में नजर आएंगे। आज अमीरी और गरीबी के बीच बढती खाई इसी शोषण की मानसिकता का परिणाम है। इसलिए आज आधुनिक सभ्य सुसंस्कृत मानव के मन मस्तिष्क और हृदय में आदिम युग के अनपढ़ असभ्य बर्बर जंगली मनुष्य के भोलेपन को जिंदा कर ही हम इस दौर की मानवता को बचा सकते है और शोषण के समस्त औजारों को भोथरा कर सकते हैं । । आधुनिक सभ्य सुसंस्कृत मानव के ज्ञान विज्ञान तकनीकी के साथ आदिम युग के अनपढ़ असभ्य बर्बर जंगली मनुष्य के भोलेपन के संयोग से एक बेहतर समाज और बेहतर संसार का निर्माण किया जा सकता है। इसलिए फ्रांसीसी क्रांति के महान दार्शनिक जीन जेक्स रूसो के इस कथन पर चिंतन मनन करने की आवश्यकता है कि - प्रकृति की ओर लौटो (Back to nature)



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