धर्म एक दिया है जिससे रोशनी करें किसी का घर न जले-

मनोज कुमार सिंह प्रवक्ता बापू स्मारक इंटर कॉलेज दरगाह मऊ

आम जनता के बुनियादी मुद्दों पर सडक पर संघर्ष करने की बजाय जाति और धर्म के आधार पर जनता का भावनात्मक शोषण कर वोट उगाहना सरल और सहज होता हैं। इसलिए जाति और धर्म की राजनीति का ऐतिहासिक अवलोकन करना अत्यन्त आवश्यक है । भारत में मुगल वंश के संस्थापक जहीरूद्दीन मुहम्मद बाबर का भारतीय बसुन्धरा पर पहला युद्ध(पानीपत का प्रथम युद्ध) दिल्ली सल्तनत के तत्कालीन सुल्तान इब्राहीम लोदी के साथ हुआ जो स्वयं एक मुसलमान था। परन्तु राणा सांगा के साथ खानवाॅ के युद्ध के समय बाबर ने अपने हताश निराश डरे और सहमे सैनिकों में हौसला भरने के लिए धर्म का इस्तेमाल किया और इस युद्ध को धर्मयुद्ध घोषित किया । प्रकारांतर से इतिहास में कई शासकों ने अपनी सत्ता शक्ति प्रभाव और साम्राज्य के विस्तार के लिए धर्म का जमकर इस्तेमाल किया। सम्पूर्ण मध्यकालीन इतिहास में धर्म राजनीति का प्रमुख औजार रहा है मध्यकालीन राजाओं और शासकों ने अपनी सुविधा के अनुसार इसका इस्तेमाल किया। वस्तुतः इतिहास में मध्ययुगीन कालखंड पूरी तरह से अंधविश्वास,अंधभक्ति, अंधीआस्था और बर्बरता का दौर था और इस दौर में तलवारें और रणकौशल साम्राज्य की सरहद और सीमाएं तय करती थी। प्रायः अपने साम्राज्य विस्तार तथा युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिए हर धर्म के शासकों द्वारा धर्म का इस्तेमाल अपने समुदाय के लोगों में जोश और उन्माद भरने के लिए किया जाता था। हर धर्म के शासकों ने अपनी महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति,संकीर्ण सत्तावादी स्वार्थों तथा अपनी साम्राज्य विस्तार की योजनाओं के लिए धर्म की मौलिक भावना और निहितार्थ को दूषित प्रदूषित और विकृत कर दिया। विशुद्ध रूप से धर्म का सम्बन्ध व्यक्तिगत जीवन की शुद्धता और बेहतर समाजिक आचरण और व्यवहार से होता हैं तथा हर व्यक्ति का व्यक्तित्व समस्त नैतिक आदर्शों मूल्यों मर्यादाओं के अनरूप उत्कृष्टतम स्वरूप धारण करे यही धर्म की सार्थकता है। मौलिक रूप से लगभग सभी धर्मों का अभ्युदय सर्वोच्च नैतिक मूल्यों मर्यादाओं मान्यताओं,आदर्शों और सिद्धांतों की स्थापना तथा व्यक्तिगत जीवन को उच्चतम मानवीय मूल्यों आदर्शों और मान्यताओं से शिक्षित प्रशिक्षित संस्कारित और अनुशासित करने की निर्मल भावना के साथ हुआ।परन्तु आज राजनीति के साथ धर्म का घाममेल करके राजनेता धर्म का बेजा इस्तेमाल वोट उगाहने के लिए कर रहे हैं। सर्वव्यापी,सार्वभौम, और सर्वशक्तिमान सत्ता से आत्म- साक्षात्कार कर व्यक्तिगत जीवन को निर्मल निःस्वार्थ निष्छल और सचरित्र बनाने के लिए धर्म का इस्तेमाल किया जाना चाहिए तथा राजनीति में इसका प्रयोग सामाजिक संबंधों की दृष्टि से बेहद खतरनाक होता है। इतिहास का तथ्यपरक और तार्किक विश्लेषण करने पर ज्ञात होता है कि- जब-जब राजसत्ताओ ने धर्म के साथ घालमेल करने का प्रयास किया है तो समाज में अंधभक्ति अंधविश्वास और अंधी- आस्था का साम्राज्य पर्वतित हुआ है तथा समाज एक उन्मादी भीड के रूप में परिवर्तित हुआ है । रोमन साम्राज्य के पतन के उपरांत पूरे यूरोपीय महाद्वीप में अंधविश्वास ,अंधभक्ति और धर्मांधता अपनी पराकाष्ठा पर पहुंच गई । तर्क बुद्धि विवेक ज्ञान विज्ञान के स्थान पर जब अंधभक्ति अंधविश्वास और अंधी आस्था जब प्रभावी होने लगती हैं तो सम्पूर्ण समाज पतन की पराकाष्ठा पर पहुंच जाता हैं। जब धर्म सुधार आन्दोलन और पुनर्जागरण के फलस्वरूप पन्द्रहवी शताब्दी में यूरोप ने धर्मांधता का चोला उतार कर फेंक दिया और तर्क बुद्धि विवेक और ज्ञान-विज्ञान का परिवेश निर्मित किया तब यूरोप में विकास की सम्भावनाएं निर्मित होने लगी। पन्द्रहवी शताब्दी में निर्मित तार्किक बौद्धिक वैज्ञानिक परिवेश में यूरोप में अनगिनत खोंजो और आविष्कारों का चमत्कार हुआ जिसके फलस्वरूप यूरोपियन देश बहुआयामी उन्नति की राह पर सरपट दौड़ने लगे और आज भी तरक्की के नित नये पायदान स्पर्श कर रहे हैं। यूरोपियन देशों का विकास इसका प्रमाण है कि विकास के लिए धर्मसत्ता और राजसत्ता के मध्य स्पष्ट विभाजन आवश्यक है। भारत सहित दक्षिण पूर्व एशिया के देशों के चुनावी मौसम में धर्म,जाति,सम्प्रदाय और प्रजाति का जमकर प्रयोग किया जाता हैं। कुछ राजनीतिक दलों का संगठन और निर्माण ही धर्म जाति और सम्प्रदाय की बुनियाद पर होता हैं।धर्म जाति सम्प्रदाय की बुनियाद संगठित और संचालित राजनीतिक दल अपने संकीर्ण सत्तावादी स्वार्थों की पूर्ति के लिए आम जनमानस का जातिवादी सांप्रदायिक पाठ्यक्रम के अनुसार शिक्षण प्रशिक्षण करते हैं जिसके फलस्वरूप धीरे-धीरे समाज उन्मादी भीड में बदलने लगता है। तर्क बुद्धि विवेक लेकर धरती पर अवतरित मनुष्य को आस्था निष्ठा के नाम पर अंधभक्त बनाने का निरंतर प्रयास राजनीतिक दलों द्वारा किया जाता है। आज से ढाई हजार वर्ष पूर्व के यूनानी समाज का अवलोकन और अध्ययन करें तो पता चलता है कि-आज से ढाई हजार वर्ष पूर्व का यूनानी समाज तर्क बुद्धि विवेक से पूरी तरह लबालब लबरेज़ था और हर तरह की आलोचना के लिए पूरी तरह तरह स्वतंत्र था। तर्क बुद्धि विवेक और ज्ञान-विज्ञान के स्वस्थ्य और स्वतंत्र वातावरण में प्राचीन यूनान अनगिनत चमत्कार किए। इसलिए यूनान को ज्ञान-विज्ञान का पालना कहा जाता हैं। इसलिए धर्म का प्रयोग व्यक्तित्व को रोशनगर्द करने के लिए किया जाता हैं किसी का घर जलाने के लिए नहीं।



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