शान-ओ-शौकत और शक्ति प्रदर्शन का कार्यक्रम बनते जा रहे है शादी- विवाह के उत्सव

मनोज कुमार सिंह प्रवक्ता बापू स्मारक इंटर कॉलेज दरगाह मऊ

हमारी गौरवशाली समस्त सनातनीय, वैदिक,उपनिषदीय ,पौराणिक मान्यताओं और परम्पराओं में लगभग आठ तरह के वैवाहिक पद्धतियों और संस्कारों का उल्लेख मिलता है और साथ ही साथ यह धारणा समानांतर रूप से प्रचलित रही कि-समस्त प्रकार के विवाहों के समस्त संस्कारों को पूरी सहजता,शिष्टता,सौम्य्ता, समरसता, सरलता, सात्विकता, शालीनता, सादगी और पूर्णतः मानसिक पवित्रता के साथ मनाया जाना चाहिए । अभद्रता,अशिष्टता, उच्छृंखलता और अश्लीलता हमारे किसी भी उत्सव, किसी भी पूजा पद्धति और किसी भी मांगलिक अवसर का हिस्सा कभी भी नहीं रहीं । मांगलिक अवसरों पर छक कर मदिरापान उद्डंता अभद्रता अशिष्टता, अश्लीलता,भौडा प्रदर्शन और अनुशासनहीनता आसुरी और राक्षसी पवृति का द्योतक हैं । शादी-विवाह का अवसर मानव के जीवन का सबसे अनमोल स्निग्ध मधुरिम एहसासों का क्षण होता है और यह परिणय सूत्र के पवित्र बंधन में पवित्र संकल्पो के साथ बंधने का साक्षात,सर्वाधिक सर्वोत्तम सुनहरा कभी भी विस्मृत न होने वाला शुभ अवसर होता हैं जो पूजा-पाठ और यज्ञ के समकक्ष होता है। इसलिए पूजा-पाठ और यज्ञ के लिए जो आवश्यक शारीरिक शुद्धता और मानसिक पवित्रता होनी चाहिए वही शादी विवाह जैसे अवसरों पर भी अनिवार्य रूप से होनी चाहिए । प्रणय मिलन की यह मधुरिम बेला दो मन- मस्तिष्को, दो हृदयो, दो आत्माओं, दो अजनबी व्यक्तित्वो और दो परिवारों का पूरी निश्छलता, निर्मलता, और निष्कपटता के साथ सहकारी सहगामी होने का शुभअवसर होता हैं । प्रणय-युग्म अग्नि को साक्षी मानकर सात फेरो संकल्पो और सौगन्धो के साथ आजीवन भावी पथ के सहगामी और सहचर बनते हैं। बढते बाजारीकरण के कारण चहुँओर पांव पसारती अपसंस्कृति और पद प्रतिष्ठा रुतबा रसूख को सामाजिक रुप से प्रदर्शित करने की चाहत ने इन मांगलिक अवसरों की पवित्रता निर्मलता को हमसे मीलों दूर कर दिया हैं । गांव-गिराॅव से लेकर देश के बडे बडे शहरो में पद प्रतिष्ठा प्राप्त नौकरशाहों उद्योगपतियों सियासी रसूखदारों और नब्बे के दशक में येन केन प्रकारेण दौतल कमाए नवधनाढय लोगों ने अपने बेटे-बेटियों के शादी विवाह जैसे अवसरों को अपनी शक्ति सत्ता प्रभाव हनक और धाक और धौंस के प्रदर्शन का औजार बना दिया । नोटबन्दी के दौरान कर्नाटक में रेड्डी बन्धुओ की बेटी की आलीशान शादी का समारोह राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय रहा। आर्थिक जगत के महारथियों सियासी सामाजिक रसूखदारों द्वारा इन पवित्र पावन मांगलिक अवसरों पर दौलत शक्ति सत्ता की नुमाईश अक्सर अखबार की सुर्खिया बनती है। महाजनों येन गतःस पंथा का अक्षरशः अनुपालन करते हुए आम जनमानस भी अपने मांगलिक अवसरों को अविस्मरणीय और आलीशान बनाने और भव्यता प्रदान करने में कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखता हैं। आम जनमानस के समक्ष निरंतर बढती आर्थिक,पर्यावरणीय सांस्कृतिक और सामाजिक चुनौतियों,मुश्किलों,दुश्वारियों,दुश्चींतओ एवं समस्याओं को ध्यान में रखते हुए शादी-विवाह जैसे व्यक्तिगत और पारिवारिक कार्यक्रमों और उत्सवों को मितव्ययिता के सिद्धांतों का अक्षरशः अनुपालन करते हुए पूरी सहजता, सरलता और सादगी पूर्ण तौर-तरीकों से मनाने पर विचार करना अब नितांत आवश्यक हो गया है। कोरोना संकट ने संयमित और अनुशासित जीवन शैली अपनाने और शादी विवाह जैसे अवसरों से लेकर समस्त तीज-त्यौहारों को शांति सहिष्णुता सरलता और सहजता के साथ मनाने के प्रेरित किया परन्तु अनगिनत सुझावों सलाहों और सरकार द्वारा जारी दिशा निर्देशों को दरकिनार करते हुए आज भी हम शादी विवाह के उत्सवो को पूरे शान-ओ-शौकत से मना रहे है। जर्मनी के मशहूर इतिहासकार ए एल बाशम ने कहा था कि-भारत एक उत्सवधर्मी देश है यहाँ हर उत्सव हर मन-मिज़ाज हर हृदय के लोग हर परिस्थिति में छक कर मनाते हैं। यहां हर ॠतु हर मौसम हर तीज-त्यौहार के साथ शादी-विवाह के उत्सव भी बडे उल्लास उत्साह और उमंग के साथ मनाये जाते है।समाज के बढे-चढे सम्भ्रांत सम्पन्न सम्पत्तिशाली और रसूखदारों का अनुसरण और अनुकरण करते हुए आम जनमानस भी अपनी घरवाली का सारा गहना-गुरिया बेचकर या अपनी खेत-बारी जमीन-जायदाद रेहन रखकर शादी-विवाह के उत्सव को भव्यता प्रदान करने की पूरी कोशिश करता हैं। यह एक ऐतिहासिक सच्चाई है कि-दुनिया का हर साहित्यिक, सांस्कृतिक, रंगमंचीय, पर्यावरणिय ,धार्मिक, आध्यात्मिक,सामाजिक और दार्शनिक उत्सव भारतीय बसुन्धरा पर किसी न किसी रूप में किसी न किसी जगह पर जरूर मनाया जाता हैं। इसका जीता जागता उदाहरण है कि-पारसी धर्म जिस धरती पर पैदा हुआ उस धरती से पूरी तरह विलुप्त हो गया परन्तु पारसी धर्म के सारे त्यौहार भारतीय बसुन्धरा पर पूरी उर्जा पूरे उत्साह के साथ मनाये जाते है। परस्पर एक दूसरे के सुख-दुख में शिरकत करने सहकार समन्वय साहचर्य की भावना के साथ शामिल होने की प्रवृत्ति आम भारतीयो में बहुलता से पाई जाती हैं। आज बढती महंगाई जीवन जीने की बढती दुश्वारियों मुश्किलों और नये दौर की बढती आर्थिक और सामाजिक चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए अपनी उत्सवधर्मी प्रवृति और उत्सवधर्मिता पर नये सिरे से आत्म मंथन करने की आवश्यकता है। स्वाधीनता उपरांत हमने लोकतंत्र को संवैधानिक रूप से अंगीकार कर लिया परन्तु अपने सामाजिक सरोकारों चाल-चलन जीवन शैली में लोकतंत्र और लोकतांत्रिक चेतना को पूरी तरह अभी भी आत्मसात नहीं कर पाए हैं। मांगलिक अवसरों पर पवित्रता की जगह भव्यता को महत्व देना राजतंत्रीय परम्पराओं का परिचायक हैं। आज बढती आर्थिक चुनौतियों को ध्यान में रखकर हमें उत्पादनकारी गतिविधियों पर ध्यान देना होगा और मितव्ययिता के सिद्धांतों का पालन करते हुए हर उत्सव में बढती अपव्ययी प्रवृत्ति पर विराम लगाने की आवश्यकता है। शादी-विवाह जैसे पारिवारिक उत्सव शान-ओ-शौकत का औजार नहीं है बल्कि पवित्र भावना के साथ प्रणय-युग्म के प्रणय मिलन का मधुर एहसासो का शुभअवसर है। ।



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