अन्न्दाताओं के साथ इतनी अकड ठीक नहीं है सरकार की तरफ से--

चम्पारण,खेडा,बारदोली और बिजौलिया जैसे अनगिनत ऐतिहासिक आन्दोलनों के बंशबीजो के साथ सरकार को सहानुभूति सदाशयता उदारता और गहरी संवेदनशीलता का परिचय देना चाहिए। चिडिया-चुरूंग, कीडे-मकोड़े,कीट-फीतंगे, पशु-पक्षी सहित समस्त जीवित प्राणियों की क्षुधातृप्ति कराने वाला किसान न केवल अन्न्दाता है बल्कि सियासत में चमकते दमकते अनगिनत सूरमाओं का भाग्य-विधाता भी है क्योंकि इन्ही भोले-भाले अन्नदाताओं के तर्जनी अंगुली की निली स्याही के निशान की बदौलत अनगिनत राजनेता विधायक, सांसद जनप्रतिनिधि, समाज का रहबर, रहनुमा,मसीहा और सुल्तान बनते रहे हैं । सोने चाॅदी हीरे जजवाहरात, विलासितापूर्ण और सुविधाभोगी वस्तुओं से हमारे शौक पूरे हो सकते परन्तु एक भी भूखे पेट की भूख नहीं बुझाई जा सकती है ,हर भूखे पेट की भूख केवल और केवल अनाज फल दूध और सब्जी से बुझाई जा सकती है । अनाज फल दूध और सब्जी केवल और केवल इस देश में किसान उगाता और उपजाता है। इसलिए इस बसुन्धरा के हर प्राणी की हर तरह की भूख मिटाने वाले किसानों के दुःख दर्द को मिटाने का प्रयास हर सरकार का प्राथमिक दायित्व और कर्तव्य है। बुलेट ट्रेन और सुपरसोनिक वेब की रफ्तार से बदलती दुनिया और दौर के लिहाज से खेती-किसानी वैसे भी घाटे का सौदा होती जा रहा है ऐसे समय में अगर न्यूनतम समर्थन मूल्य की कानूनी प्रथा और परिपाटी अगर समाप्त हो जाएगी तो किसान निश्चित रूप से कंगाल हो जाएगा । समाज, सभ्यता, संस्कृति और देश के निर्माण में ऐतिहासिक और शानदार किरदार निभाने वाले किसान आज दिल्ली की सरकार से कृषि कानूनों को वापस लेने के लिए आर पार करने के मूड में है। अपने खून पसीने से धरती सजाने सवारने वाले और हर किसी के लिए हरियाली परोसने वाले तथा भारतीय स्वाधीनता के लिए होने वाले हर संघर्ष की अग्रिम कतार रहने वाले किसानों के दुःख दर्द को पूरी संवेदना सहानुभूति और सदाशयता से सरकार को सुनना समझना चाहिए। ऐतिहासिक सच्चाई है कि- किसानो और मेहनतकशो से हेकडी और अकड दिखाने वाले शासक अंततः जमीदोंज हुए हैं। स्वतंत्रता समानता बंधुत्व मानवता और मानवीय अधिकारों के लिए होने वाली समस्त बिख्यात वैश्विक क्रांतिओ का नायक और अग्रिम कतार का लडाका यही किसान रहा है । हर दौर में हर बडा परिवर्तन करने और हर दौर में वक्त का पहिया बदलने में किसानो की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।1857 के प्रथम स्वाधीनता संग्राम से लेकर 1947 तक आजादी के लिए होने वाले हर संघर्ष में सबसे शानदार किरदार निभाने वाले किसानों का आज ठंढ भरी रात में दिल्ली के गूंगे-बहरे हुक्मरांनो को अपनी दर्दभरी दास्तान कहने के लिए इकट्ठा होना हमारी महान लोकतांत्रिक परम्पराओं और परिपाटिओ का अपमान है। अनगिनत आरम्भिक सभ्यताओं और संस्कृतियों का निर्माता,इस बसुन्धरा का अटल अडिग परिश्रमी पुरूशार्थी पथिक आज अपने पसीने की कमाई की वाजिब कीमत लेने के लिए हस्तिनापुर की चौखट पर खड़ा है। सरकारी चौपालों के माध्यम से अभी तक कोई समाधान नहीं निकला है। सरकार को जिद और अंहकार का परित्याग कर किसानों की शंका आशंका का समुचित समाधान ढूँढना तलाशना चाहिए। मनोज कुमार सिंह प्रवक्ता बापू स्मारक इंटर कॉलेज दरगाह मऊ।



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