जीत जाओ तो कई अपने पीछे छूट जाते है

सम्पादकीय जगदीश सिंह सम्पादक


जीत जाओ तो कई अपने पीछे छूट जाते है!

और हार जाओ तो अपने ही पीछे छोङ जाते है!

बर्तमान सदी मे पैदा हुए लभ जिहाद पर सरकारने लगाई रोक ?br बेखौफ हो रहा था धर्मपरिवर्तन !
बदलता समाज आज जिस रास्ते पर चल निकला उसमे अगर कहीं खूबसूरती नजर आ रही है तो तमाम बिकृति भी पनप गयी है! आधुनिकता के नाम खुलेयाम नंगापन फूहङपना और मानसिक दिवालियापन हर जगह देखा जा रहा है!आज कल धर्मपरिवर्तन! बिजातिय बिबाह!बिरादरी और मजहब से हट कर निकाह ! आम बात हो गयी है! इसको लेकर पूरे देश का माहौल बदल गया है !हर रोज लभ जेहाद के नाम पर समाज में बिकृति पैदा की जा रही थी! समाज मे बिघटनकारी ब्यवस्था परिवर्तित होने लगी थी!युवा समुदाय इसको सम्बिधान मे मिला स्वतन्त्रता की अभिब्यक्ती मान लिया! लेकीन दुसरे पहलू को भूल गया! कहा गया है मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और उसको सामाजिक दायरे मे ही जिन्दगीं बशर करना है ! लेकीन बदलते परिवेश मे कहीं सनातन धर्मी सशंकित है!तो कहीं मौलवी भी आतंकीत है! लोग समझ नहीं पा रहें कि आधुनिक कहे जाने वाले समाज में आज इतनी गिरावट क्यो आ रहा है! न जाति रह गयी न बन्धन न समाज का ङर न घर का काम आ रहा है प्रबन्धन ! हर तरफ क्लेष ! घर घर मे क्रन्न्दन! वैसे तो यह भी कहा जाता है कि कीसी को दो चीजो के लिये मजबूर नहीं किया जा सकता है ईबादत और मोहब्बत दोनो दिलो के मेल से शूरू होकर रूह मे उतर जाती है! लेकीन योगी सरकार के फैसले के बाद अब लोग कहने लगें हैं राजनिति के क्रूर आंखो में ममता का आँसू नहीं होता है! यह पूरी दुनियाँ मे मशहूर है कि भारतीय संस्कृति और सभ्यता हमारे जीवन का मूल आधार है। एक दौर था, जब लड़की के परिवार वाले अपनी सहमति और सूझबूझ से लड़की के लिए वर चुनते थे!और लड़की बिना अपनी इच्छा जाहिर किए परिवार के बताए नक्शे-कदम पर चल पड़ती थी।आजीवन सात जन्मो के रिश्तों की सौगात लिये जीवन के सफर पर चल कर मन्जिल फतह करती थी! लेकीन बदलते समय में अब जो आकङे आ रहें है उसमें अपवादों को दरकिनार कर दें तो शायद पचास फीसद शादियां मजबूरी और जबर्दस्ती के रिश्तों में बदल चुकी होती हैं। बात अगर इतिहास या फिर धर्मग्रंथों की करें तो ‘रामायण’ में भी यही सीख दी गई है कि वधू का अधिकार है कि वह अपने वर को अपनी इच्छा, योग्यता और अपनी भावनाओं को मद्देनजर रखकर चुन सकती है! जिस तरह राजा जनक ने अपनी पुत्रियों को स्वयंवर के जरिए उन्हें ही अपने जीवन साथी का चयन करने का अवसर दिया था। लेकिन आज के तरह उस समय खिचङी ब्यवस्था नही थी। उनको अपने समाज से ही बर चुनने का अधिकार दिया गया था! बदलते परिदृश्य मे आधुनिक लोग मभेदभाव जाति और धर्म के आधार को छोङकर मनमानी पर आ गए! जाति छिपाकर केवल सम्प्रदायिकता को बढाने के लिये जहरीला खेल शुरू कर दिये! जिससे से सामाजिक ढांचा चरमराने लगा है ! जीवन साथी का अर्थ ही होता है ऐसे व्यक्ति का चुनाव करना जो जीवन भर हर परिस्थिति में अपनी संगिनी का साथ दे। सनातनवालम्बी तो सात जन्मो के बन्धन को सहर्ष सावीकार करते है ! और बिबाह के समय सप्तपदी के मन्त्रों से तीन घन्टे तक समुचित सार्थक बिबाह के बन्धन का अर्थ समझाकर सात बचनो के बन्धन से बंध जाने का कसम खिलाकर ही बिबाह की पूर्णता पर बिराम लगाते है!बर बधू खुशी खुशी सात फेरे लेकर दामपत्य जीवन मे आग्नि देवता को साक्षी मानकर एक दुसरे को समर्पित हो जाते है! पत्नी के माँग मे दमकता सिन्दूर उसके जीवन की पूर्णता का आभाष कराता है! पिछले कुछ समय से ‘लव जिहाद’ की खबरें जोरों पर हैं। असल में यह शब्द ही गलत है! जबर्दस्ती केवल एक तरफ से या केवल एक धर्म में नहीं होती।क्या प्रेम और शादी जैसे पवित्र रिश्ते धर्म, जाति, ऊंच-नीच के दायरे से ऊपर उठ कर नहीं जोड़े जा सकते?यह सवाल आधुनिक बिचार धारा के युवा करने लगे है! कहते है! कौन सा धर्म ग्रंथ है, जिसमें यह लिखा है कि पाकीजा प्रेम या इश्क करना मना है!बिल्कुल सही सवाल है लेकीन मजहब और धर्म तो प्रेम सौहार्द के साथ समरसता के साथ जीवन बशर करने की सलाह देता है न की नफरत फैलाने का सामान है! इरादे पाक हो साफ हो तो कौन रोकता है जोद्धा बाई ने भी अकबर से प्रेम बिबाह किया था मगर धर्म पर पाबन्दी कहाँ थी! दोनो अपने एपने धल्म के हिसाब से जीवन बशर किये! !पहले से मौजूद भारतीय कानून की सख्ती से हर कोई वाकिफ है। कोई भी मजहब या समुदाय नफरत फैलाने, जोर-जबर्दस्ती करने या गलत करने की सीख नहीं देता। फिर भी आज जिस तरह का वातावरण तैयार हो रहा है उसमे इस कानून को लागू किया जाना बहुत जरूरी था! समाज मे फैल रही बिकृति से साजिक प्रदुषण लगातार बढ रहा है। सामाजिक संरचना मे प्रपंचना के चलते लगातार संगीन घटनाये वजूद मे आ रही है! हत्या बलात्कार की शिकार का आकङा बढ रहा है लभ जिहाद के नाम पर शोषण शुरू हो गया !इस बिबाह के अपवाद पर सरकार ने जो निर्णय लिया है वह सराहनीय है! समाज मे हो रहे बीभत्स कारनामो पर फीलहाल कुछ रोक लगाने मे सफलता हासिल होगा! लेकीन कानून से दो दिलो के मेल पर बन्दिस लगाना आसान नही है!यह तो प्रकृति प्रदत्त ब्यवस्था धर्म मजहब तो इन्सानी आस्था है!



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