लंका फतह के साथ शबरी की जूठी बेर का स्वाद

मनोज कुमार सिंह प्रवक्ता बापू स्मारक इंटर कॉलेज दरगाह मऊ

लंका फतह के साथ शबरी की जूठी बेर का स्वाद,जटायु की पीड़ा और सुग्रीव के दुख दर्द के अहसास के साथ अयोध्या वापस आये थे श्रीराम -- कौशल नरेश राजा दशरथ की आज्ञा का अक्षरश: अनुपालन करते हुए मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने एक वनवासी की वेशभूषा धारण कर चौदह वर्ष के लिए वनगमन किया। इस वनवासी जीवन के दौरान मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने अनगिनत रुढिवादी परम्पराओ परिपाटियों, अमानवीय असंगत,अविवेकी और अबौद्धिक मान्यताओं और धारणाओं को पूरी तरह मिटाकर नूतन मानवीय बौद्धिक और विवेकसम्मत मूल्यों मान्यताओं और मर्यादाओ को स्थापित करने का सचेतन प्रयास किया। इन्हीं श्लाघनीय प्रयासों के कारण राजा दशरथ के ज्येष्ठ पुत्र श्री राम हमारी पांच हजार वर्षीय महान सनातन संस्कृति में इस बसुन्धरा पर इकलौते मर्यादा पुरुषोत्तम की संज्ञा से विभूषित किए गए ।भक्त वत्सल श्रीराम ने शबरी की जूठी बेर खाकर अपने दौर की लौहस्तंभीय लौहस्तरीय चतुर्वणीय सांचे ढाॅचे और खाॅचे में रची-बसी सामाजिक बुनावट और कठोरता से विभाजित और विखंडित सामाजिक व्यवस्था पर करारा प्रहार किया । जिस तरह अपने दौर में मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने जातिवाद की घृणित घिनौनी ,अमानवीय,अनैतिक,अवैज्ञानिक संकीर्ण संकुचित अविवेकी अबौद्धिक और अतार्किक मानसिकता पर करारा प्रहार करते हुए प्रेम की मर्यादा को पुनर्जीवित और पुनःस्थापित किया, उससे मर्यादा पुरुषोत्तम राम में गहरी गहन आस्था निष्ठा रखने वाले और अछूतोंद्धार के लिए निरंतर आन्दोलन चलाने वालों को अवश्य प्रेरणा लेना चाहिए ।भारतीय सामाजिक संरचना का विश्लेषण करते हुए प्रख्यात समाजशास्त्री श्रीनिवासन ने कहा था कि- "भारतीय समाज विश्व का सर्वाधिक विश्रृखंलित विभाजित विखंडित और श्रेणीबद्ध (Higherarical ) समाज है। "इन समस्त विकृतियों को समाप्त किए बिना हम स्वस्थ्य समरस और सशक्त समाज का निर्माण नहीं कर सकते हैं। सत्ता प्राप्ति के लिए और संकीर्ण राजनीतिक स्वार्थों की पूर्ति के लिए सियासती गिरगिटों द्वारा सामाजिक वातावरण को निरन्तर विषाक्त किया जा रहा है। मर्यादा पुरुषोत्तम राम और शबरी के संबंधों को स्मरण करते हुए हम बढती सामाजिक विषाक्तता को रोक सकते हैं। वनगमन के दौरान दुर्गम दुरूह कंकड़ीले पथरीले रास्तों पर चलते हुए मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने उत्कट करूणा और परोपकार की भावना का परिचय देते हुए घायल जटायु को गले लगाया। मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने जटायु की आहो कराहो व्यथा -वेदनाओं को जिस तत्परता और तल्लीनता से सुनने समझने और दूर का प्रयास किया वह आज भी राह में पडें घायल दीन दुखियो की सेवा -सुशुश्रा का अद्भुत अद्वितीय और प्रेरणादायी उदाहरण है। आज चारकतारी (फोरलेन) सडकों से लेकर गांव की पगडंडियो पर आते-जाते लोगों की रफ्तार इतनी तेज है कि सडक पर घायल बुढे बुजुर्ग और अपाहिज को अनदेखा कर देते हैं। आज हम सडक पर शरारती तत्वों द्वारा किसी सज्जन को पीटते हुए नजारे या किसी महिला के साथ खुले-आम सडक पर होते दुर्व्यवहार के दृश्य के महज तमाशबीन बनकर रह गये हैं या अधिक से अधिक सूचना प्रौद्योगिकी के आधुनिकतक हाइटेक औजार के माध्यम से सेल्फी लेने में मशगूल रहते हैं।मर्यादा पुरुषोत्तम राम द्वारा घायल जटायु को गले लगाने की परिघटना हमें सामाजिक सरोकारों के लिए प्रेरित और सामाजिक संबंधों के प्रति सजग और सचेत करती है और हम समाज के सामूहिक दुख दर्द से स्वयं जोड़कर शरारती तत्वों और मनचलों के असामाजिक क्रिया-कलापों और सडक पर होने वाले सामूहिक दुष्कर्मो को रोक सकते है। मर्यादा पुरुषोत्तम राम स्वस्थ्य स्वच्छ और मर्यादित स्त्री-पुरुष संबंधों की पवित्रता और महत्ता के प्रति संवेदनशील थे। मर्यादित रिश्तों नातों की बुनियाद पर टिका हुआ समाज कभी अराजक नहीं होता और उस समाज का नैतिक मनोबल ऊंचा रहता हैं। इसलिए अपने अनुज सुग्रीव की पत्नी के साथ दुर्व्यवहार और दुराचरण के दोषी बालि का वध करने से भी मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने परहेज नहीं किया। मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने बालि का वध कर रिश्तों नातों और सामाजिक संबंधों की न्यूनतम मर्यादा स्थापित करने का श्लाघनीय कार्य किया। नारी शोषण के विरूद्घ नारी स्वतंत्रता और नारी सशक्तिकरण के प्रति मर्यादा पुरुषोत्तम राम के अन्दर अभूतपूर्व समझदारी थी। इस समझदारी का परिचय देते हुए मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने गौतम ॠषि द्वारा परित्यक्त लगभग जड़वत हो चुकी अहिल्या को उसको गरिमा सहित अधिकार वापस दिलाया और ससम्मान गौतम ॠषि से मिलन कराकर स्त्री मर्यादा को नये सिरे से परिभाषित करने का महान कार्य किया । अपने सम्पूर्ण वनवासी जीवन में मर्यादापुरुषोत्तम राम ने अनगिनत मर्यादाओ को स्थापित किया जो हमारे सामाजिक जन जीवन में आज भी अनुकरणीय और अनुसरणीय हैं।



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