विजेता के साथ-साथ वनवासी जीवन की कष्टदायी स्मृतियाँ और अनुभूतियाँ लेकर अयोध्या लौटे थे मर्यादा पुरुषोत्तम

मनोज कुमार सिंह प्रवक्ता बापू स्मारक इंटर कॉलेज दरगाह मऊ।

भारतीय बसुन्धरा पर उत्तरी गोलार्ध खासकर सम्पूर्ण एशिया की वर्ष की सबसे काली घनी अंधेरी लम्बी अमावस की रात के काले घने अंधेरे को करोड़ों दिये जलाकर पूरी तरह मिटाकर दीपोतस्व का पर्व दीपावली मनाने का चलन-कलन सदियों पुराना है । सम्पूर्ण भारतवासी पूरी उर्जा उत्साह, उल्लास, उंमग और हर्ष के साथ दीपावली मनाते हुए वर्ष की सबसे काली रात को रोशनी से सराबोर कर देते हैं और कालिख और कालिमा से भरी हुई काली रात की काली साया को पूरी बसुन्धरा से मिटा देते हैं और दीए की जगमगाती दुग्ध धवल सुनहरी रोशनी से पूरा आसमान सौन्दर्य की अद्भुत अलौकिक छटा से भर जाता हैं। सनातनी परंपराओं और पौराणिक मान्यताओं के अनुसार मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम ने उस दौर की लूट-खसोट और काली कमाई पर निर्मित स्वर्णजटित लंका को ध्वस्त कर एवं काली करतूतों और निशाचरी प्रवृत्तिओ और शक्तियों के सिरमौर राक्षसों के राजा रावण पर विजय प्राप्त कर अयोध्या वापस आए थे । समस्त आदर्शों मर्यादाओं और समस्त नैतिक गुणों से परिपूर्ण मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम अर्द्धांगिनी सीता और भाई लक्ष्मण को 14 वर्ष बाद अपने बीच पाकर सम्पूर्ण अयोध्या का हर हृदय हर्षित और आह्लादित हो गया । नर नारी बूढे जवान सब थरिया लोटा परात ढोल नगाड़े बजाते हुए नांचने गाने झूमने लगे । अयोध्यावासियो ने झूमते नाचते गाते हुए मर्यादा पुरुषोत्तम राम अर्धांगिनी सीता और भाई लक्ष्मण का पलक पावडे बिछा कर जिस तरह स्वागत अभिनंदन किया उससे मर्यादा पुरुषोत्तम राम अत्यंत अभिभूत हुए । अकल्पनीय स्वागत और सम्मान ने मर्यादा पुरुषोत्तम राम को लोकमंगल लोक कल्याण लोकरंजन और लोकसेवा की चेतना एवं प्रेरणा से अभिरंजित कर दिया। लोकहित की लोक-संवेदना से अभिरंजित राम ने एक ऐसी शासन व्यवस्था स्थापित की जिसे सम्पूर्ण वैश्विक इतिहास में एक आदर्श राज्य के रूप जाना जाता है। लोक जीवन में लोक मंगल लाना और लोक कल्याण सुनिश्चित करना एक सच्चे शासक का सर्वोपरि लक्ष्य होना चाहिए। असत्य अन्याय और अत्याचार के प्रतीक रावण पर विजय के फलस्वरूप स्वाभाविक रूप से उत्पन्न विजेता भाव से निरपेक्ष मर्यादा पुरुषोत्तम राम वनवासी जीवन की दुखदायी स्मृतियों और अनुभूतियों के साथ अयोध्या वापस आये थे । चौदह वर्षीय वनवासी जीवन की दुखदाई कष्टदायक स्मृतियों और अनुभूतियों ने मर्यादा पुरुषोत्तम राम को जनता के दुख दर्द को दूरकर स्वस्थ्य समरस सशक्त ईर्ष्या द्वेष कलह और कलुष मुक्त समाज बनाने के लिए कृत संकल्पित कर दिया । लोकहित और लोकरंजन के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने की संकल्पना के साथ तथा समाज में न्याय की स्थापना के लिए मर्यादा पुरुषोत्तम ने सर्वोच्च नैतिक मूल्यों मर्यादाओं और आदर्शो पर आधारित राजनैतिक व्यक्तित्व ,राजनैतिक चरित्र और राजनैतिक शैली अपनाया और सर्वश्रेष्ठ तथा सर्वोत्तम सरकार का आदर्श प्रस्तुत किया । मर्यादा पुरुषोत्तम राम के सम्पूर्ण शासन काल को वैश्विक इतिहास में आदर्श शासन व्यवस्था के रूप में माना जाता हैं। जिसे भारत के प्राचीन मध्ययुगीन संतों महात्माओ मनीषियों और आधुनिक काल के विद्वान राजनीतिक विश्लेषको द्वारा "रामराज्य " के नाम से महिमामंडित किया जाता हैं।महान स्वाधीनता संग्राम के दौरान राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने उसी रामराज्य की परिकल्पना के साथ भारतीय राजनीति में पदार्पण किया और जीवन पर्यंत समता ममता न्याय पर आधारित रामराज्य को वास्तविकता के धरातल पर उतारने के लिए प्रयासरत रहे। मर्यादा पुरुषोत्तम राम की शासन व्यवस्था रामराज्य सर्वोत्तम व्यवस्था चाहने वालों राजनीतिक विश्लेषकों के लिए आज भी बहस मनन और चिंतन का विषय है। इंग्लैंड के उपयोगितावादी राजनीतिक चिंतको जर्मी बेंथम और जांन स्टुअर्ट मिल की चिंतनधारा "अधिकतम लोगों के अधिकतम कल्याण " में रामराज्य की छोटी सी झलक मिलती हैं। आज जब इस देश के अधिकांश राजनेताओं शासकों और प्रशासकों में अपनी तिजोरी आलमारी गठरी मोटरी और पोटरी गुलाबी नोटों से भरने की गलाकाट प्रतियोगिता चल रही हैं तब मर्यादा पुरुषोत्तम राम द्वारा प्रस्तुत आदर्श शासन व्यवस्था राम राज्य समाज और जनमानस को दिशा दे सकता हैं।पटाखो के कानफोड़ू शोर में रामराज्य का यह विचार आसमान में खो जाता हैं । अयोध्या आगमन के उपलक्ष्य में मनाया जाने वाला दीपोतस्व का यह पर्व दीपावली वास्तव मे रामराज्य के शुभारंभ का भी पर्व है। प्रकारांतर से वनवासी राम का अयोध्या आगमन रामराज्य का आगाज था ।इसलिए रामराज्य के चिंतन के साथ दिवाली मनाए।



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