घोसी में घमाशान, किसको मिलेगा कमल निशान?


सम्पादकीय - जगदीश सिंह

राजनिति में फैल गये जाति बाद के पाँव। छुपने को है ढूँढ रही आजादी अपना ठाँव।
आजादी आँसू भरे कहे मेरा देश महान। हंस उपेक्षित है, यहाँ बगुलों का सम्मान।।


लोकतन्त्र के इस महापर्व का दूसरा चरण भी सियासत के रहनूमाओं के भाग्य को समेटे भगवान भाष्कर के अस्ताचलगामी किरणों के साथ बक्से में बन्द हो गया। कल का सूरज नव विहान में नया इतिहास की इबारत लिये निकलेगा। इधर तीसरे चरण के लिये सियासत के बादल उमङने घुमङने लगे हैं। हर तरफ भागमभाग कहीं पानी कहीं आग कहीं चुनाव कहीं मनमुटाव, लोकतन्त्र के पहरूवे अपनी किस्मत को आजमाने के लिये हलकान तो कहीं अपनी गाढी कमाई को खेतों में बर्बादी से बचाने के लिये परेशान किसान। आँधी पानी से तबाही की आशंका से सशंकित है किसान। कहीं बर्बादी का मंजर न पैदा कर दे आने वाला तूफान। सियासत के बादल भी वर्तमान परिवेश में तेजी से रंग बदल रहे हैं। हर तरफ शोर कहीं चौकीदार तो कहीं सियासतदार चोर। अब जब देश की सियासत में व्यवस्था बदलने के लिये आम आदमी सङकों पर उतर चुका है, ऐसे में इस जनपद की एक मात्र ससंदीय सीट घोसी आज भी उपेक्षित है। न तो यहाँ सियासी हवा है, ना ही कोई उत्साह। अभी तक जब की अगली बाईस तारीख से पर्चा दाखिल होने वाला है अभी तक कमल निशान को लेकर चलने वाला सियासत का गाङीवान नहीं मिला है जिसके चलते हर तरफ उदासी है, तो अन्य दलों मे बधवासी छायी है। आखिर क्या होगा? कौन आयेगा कमल निशान से? बहरहाल जो कुछ हो इस बार घोसी ससंदीय इलाके में जातिगत समीकरण ही निराकरण करेगा। कौन बनेगा राजा नहुष की ऐतिहासिक धरती का बेताज बादशाह?

बदलते परिवेश में समावेश की ईबारत का लोप होता जा रहा है बल्कि विद्वेष का हर हरफ नया सूत्र बनता जा रहा है। इसका बीजरोपण भी सियासत के पानी से ही हो रहा है। जो आने वाले कल के लिये घातक समाज का निर्माण कर रहा है। कल क्या होगा यह तो आने वाला समय ही बतायेगा लेकिन सियासत की इबारत लिखने वाले अपने स्वार्थ में समाज में जो जातिवादी बीज अंकुरित कर रहे हैं। उससे समाज का कत्तई भला नहीं होगा। हर गाँव का माहौल बदल गया है जातिवाद का नंगा नाच हो रहा है विद्वेष की हवा झंझावात कर बह रही है विकास के नाम पर विनाश की इबारत लिखी जा रही है। विषाक्त होता जा रहा है माहौल और इसके जिम्मेदार है केवल सियासत के लोग जिन्होंने अपने मतलब के लिये पैदा कर दिये लाईलाज रोग है। जो निश्चित रूप से इस देश की व्यवस्था के लिये शुभ नहीं है।

लोकतन्त्र तू धन्य है सुविधायें भरपूर, जश्न आजादी का बना नाम मात्र दस्तूर।
जाति धर्म क्षेत्रियता में ढूँढ रहा विश्वास, सत्यमेव जयते की हर कोई करे तलाश।



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