रोटी रोजगार और किसान के मौलिक मुद्दों से हटती चुनावी राजनीति

रोटी की खातीर धक्के खाते, प्यास लगे आँसू पीते है।
माँ की दवा बहन की शादी में घर बार पङा गिरवी
लहू पसीने से व्याकुल नित फटे कलेजे को सीते है।।


देश की व्यवस्था में नौजवानों, बेरोजगारों, कामगारों, खेतीहरों, मजदूरों की खंङित होती आस्था पर न तो सरकार चिन्तित है न ही देश के सियासतदार। हर तरफ मायूसी उदासी की कालिमा लिये भयावह मंजर के आवरण से ढका कसमसा रहा है, तबाही के रास्ते पर खङा बेरोजगार।

किसान की खेती भगवान भरोसे, कामगारों की रोजी आधूनिक मशीनों ने छिन ली, गरीब अपने नसीब पर अपनी तकदीर को कोसता है, पश्चाताप करता है। दो जून की रोटी के लिये दर दर ठोकरे खाता है और इस देश के गद्दार सियासतबाज नोट के बण्ङलों पर आलीशान अट्टलिका खङी करके मुस्कुराता है। देश का भाग्य विधाता कहलाता है।

अब तो ऐलान हो गया है कि सिंहासन खाली करो की जनता आती है। लेकिन ये भी किसी कवि की कल्पना भर है। सिंहासन पर तो वही बैठेंगे कालिया नाग जो लोकतन्त के मन्त्र को जप कर देश की व्यवस्था में कुंङली मार कर बैठे हैं। जिस मिशन को लेकर देश की आजादी के लिये नौजवानों ने शहादत दिया वो तो सब बेकार हो गया, सब कुछ बर्बाद हो गया।

जो महल हमने गढा था वो महल।तो है नही झोपङी में रक्त से जलता दीया है वाली बात आज भी कायम है। हर तरफ लूट, हर तरफ देश में बढ रहा आर्थिक जरायम है, नेता बेलगाम हैं। अब तो इस देश की व्यवस्था को लूटेरे चोर भ्रष्टाचारी, व्यभिचारी, गद्दारी करने वाले चलाते हैं। उनको शहादत से क्या लेना देना। उनके लिये बेरोजगारी सियासत करने के लिये परमामेन्ट सूत्र है। गरीबी भाषण देने का फार्मूला है। तडपते मरते किसान सियासत की किताब के अहम पन्ने हैं। बेरोजगार कामगार उनके लिये सियासत की अहम इबारत है। ये सब नहीं रहेगा तो सियासत की आग कैसे भङेकेगी? कैसे देश की जनता को मूर्ख बनाकर घङियालूू आँसू बहाकर राजनिति की रोटी सेकी जायेजी?

ये कभी खत्म न होने वाला अन्तहीन सिलसिला है। आज देश को बर्बादी के तरफ ले जाने वाले दोगले सियासतबाज जिनके घरों में अकूत सम्पदा बेखौफ जमा हो गयी है, वो भी गरीबों के हिमायती है । देश को गिरवी रखने वाले देश भक्ति की बात करते है। देश भक्तो के नाम पर सियासत की कुर्सी सलामत रखने का ताना बाना बुनते है ।और शंहशाही जिन्दगी बसर करते हैं। कोई कल न कारखाना काम न धन्धा फिर भी अपार सम्पदा के मालिक। आखिर क्यों इस देश में दो तरह को व्यवस्था है? इस पर मन्थन गहन बिचार करने का समय आ गया है। ठन्ङे दिमाग से सोचने की आवश्यक्या है। जरा सोचिये चौबीस घन्टा डियूटी बिना खाये पिये व्यवस्था सम्भालने वाले वर्दी में धूप सर्दी झेलने वाले उन जाबांज जवानों पर क्या गुजरती है? जब समय के अभाव पैसे के अभाव में परिजन बिछङ जाते हैं और वही सियासत के बहुरूपीये पंच सितारा होटलों मे नाश्ता करते है महंगे गाङीयो से चलते है दुनियां की सारी सूख सुविधा का उपयोग करते है न तो उनके लिये कोई समय सीमा है न ही उनके के लिये कोई नियमावली क्यों? आखिर इस व्यवस्था पर रोक क्यों नही लग पाती? क्यों नही उनके लिये नियमावली बन पाती? एक दिन के लिये ससंद चले गये तो आजीवन पेन्शन जीवन भर का खत्म टेन्शन और हम आप उनके पीछे जिन्दाबाद मुर्दाबाद के नारे लगाते हैं। क्यों कोई नहीं पूछता किस बात का लेते हो तनख्वाह? किस बात की लेते हो सुविधा? आज यह दुविधा भरा माहौल क्यों? अब यह सवाल हर तरफ ताल ठोंक रहा है। आने वाले कल में देश का बेरोजगार कामगार नौजवान किसान अगङाई लेगा व्यवस्था बदलेगी? बस आप वक्त को बदलने के लिये अपने विवेक से नये भारत के निर्माण के लिये अपने कीमती वोट को सही जगह प्रयोग करें। निश्चित रूप से हम बदलेंगे युग बदलेगा वाली बात चरितार्थ होगी।

गरीब होने से तहजीब मर नहीं सकती। हम चिथङो में भी है वफादारी से हिन्दुस्तान के साथ।।
सियासती लोग कहीं हौसला न कत्ल कर दें। तभी तो जंग छिङी है बेरोजगार किसान नौजवान के साथ।।


जय हिन्द



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