ये दौरे तरक्की है या दौरे तबाही है, कपङों के दरीचों से बदन झाँक रहे हैं


जगदीश सिंह

पाश्चात्य सभ्यता के अंधाधुंध पालन से बरबाद होती युवा पीढी

आज के परिवेश में इस देश की युवा पीढी तेजी से पाश्चात्य सभ्यता की नकल कर अपनी सनातनी हिन्दुस्तानी व्यवस्था को दरकिनार करता जा रहा है। ना संस्कार, ना विचार, ना संतुलित आहार, फास्टफूङ, नकली दूध, कर्ज लेकर भर रहा है। "सूद न खेती, न बारी, हर काम उधारी" सङक पर मारा मारी। उपर से कहते हैं, हम ऐङवान्स हैं।
बेतरतीब बाल, पिचके हुए गाल, शराबी की चाल, हर तरफ गीदङों के तरह झुन्ङ बनाकर बीच सङक पर करता रोमांस है। माँ बाप का तिरस्कार, बङों से आशोभनीय व्यवहार को कहता है, ये नये जमाने का फन्ङा है। बाइक सवारी, शराब की खुमारी , जवानी में ही सब कूछ बर्बाद करने को ही समझता मस्ती है।
हम ये तुनकबन्दी नहीं कर रहे हैं। रोजाना जिस हकीकत से रूबरू होते हैं, उसी को बता रहे हैं। समाज में फैल रही कूरीतियों का आईना दिखा रहे हैं। कल हम शहर के चौक से गूजर रहे थे। युवाओं का समूह, युवतियों के हजूम को देखकर एकाएक मुँह से निकल पङा "ये दौरे तरक्की है या दौरे तबाही है, कि कपङो के दरीचों से बदन झाँक रहे हैं"
यूँ तो इस परिवेश को तरक्की का ही कहा जा रहा है, लेकीन जो गिरावट सामाजिक मर्यादा का रोज हनन हो रहा है, यह निश्चित रूप से आने वाले कल के लिये शुभ संकेत नहीं है।
कहा गया है जिस देश को बरबाद करना हो, उस देश की संस्कृति को बरबाद कर दो। आज हम उसी राह पर चल रहे हैं। बेपर्दा होती औरतें, गायब होती युवा पीढी की गैरत और समाज मे बढ रही नफरत। तीनों का समावेश बरबाद कर देगा देश। बस देखते जाईये इस फार्मंले के साथ कि:-

मूदहु आख कतहू कूछ नाही । सब सम्भव है कलयुग माहीं।।



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