किसानों की अंतर्वेदना ......

एसके सिंह

किसानों की अंतर्वेदना ...... वर्तमान समय में देश में किसानों का आंदोलन चल रहा है। क्या किसी भी सरकार,व्यक्ति ,संस्था अथवा संगठन ने किसानों के दर्द को समझने की जहमत उठाई ? शायद नही । आज टीवी,फ्रिज,एसी इत्यादि तमाम उत्पादों का उत्पादन करने वाला करोड़ पति और अरब पति है।जबकि इन उत्पादों के रहने या न रहने से हमारे जीवन पर कोई फर्क पड़ंने वाला नही है। वहीं देश में अन्न का उत्पादन करने वाला किसान दीन, हीन, दरिद्र,फटेहाल,असहाय,बेबस,लाचार और आत्म हत्या करने को,गांव से पलायन करने को मजबूर है । जब कि यदि किसान अन्न का उत्पादन बन्द कर दे तो मनुष्यों का जीवन ही संकट में पड़ जाय।जीना मुश्किल हो जाय ।तथाकथित संसद और विधान सभाओं में जो हमारे जन प्रतिनिधि देश की जनता का प्रतिनिधित्व करते हैं उन्हें भी आटा-दाल का मूल्य समझ में आ जायेगा । सरकारें कृषि को क्यों नही उद्योग का दर्जा देती है। फसल का उचित मूल्य निर्धारण क्यों नही किया जाता है? देश के किसान आजादी के समय से ही समस्त सरकारों द्वारा छले,ठगे जा रहे हैं। किसी का भी किसानों के ऊपर कोई ध्यान नही है। आज देश के किसान आत्म हत्या और पलायन को मजबूर है।और अपने दुर्भाग्य पर खून के आंसू रोने पर मजबूर है । मुझे तो लगता है कि देश में अब एक किसान क्रांति की जरूरत है।करो या मरो की नीति पर चलना ही अब किसान के लिए शेष रह गया है । क्योंकि किसानों की अब सुनने वाला कोई रहा नही । आगे हरि इच्छा । धन्यवाद ।



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