दूसरों का विचार करने के स्थान पर स्वयं के विकास पर ध्यान दें
प्रदीप पाण्डेय
पराए पापों के प्रायश्चित की चिंता ना करके, पहले अपने पापों का प्रायश्चित करना होगा।
किसी के दोष को देखकर उससे घृणा नहीं करनी चहिए और ना उसका बुरा चाहना चाहिए। यदि हम कुविचार करते हैं तो उसका दोष तो पता नहीं कब दूर होगा लेकिन हमारे अंदर घृणा, क्रोध, द्वेष और हिंसा को अवश्य ही स्थान मिल जाएगा।उसमें तो एक ही दोष था, परन्तु हमारे अन्दर चार दोष आ जाएंगे।यह सम्भव हो सकता है हमारे और उसके दोषों के नाम अलग हों।
दूसरे के पापों का प्रकाशन करने के बदले सुहृद बनकर उनको ढँकने का प्रयास करना चाहिए। दूसरे के छिद्रों को भर देने के लिए प्रयासरत रहना चाहिए ना की उन्हें उजागर करने के लिए ।
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