दिव्यांगों के लिए समावेशी बैंकिंग सेवा की कठिन है डगर
अमित त्रिपाठी
बैंकों को नहीं पडता कोई फर्क
कहीं भी शाखा खोलने की मिल जाती है मंजूरी
सन 2014 में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा समाज के प्रत्येक वर्ग को समावेशी बैंकिंग सेवा उपलब्ध कराने के लिए "प्रधानमंत्री जन धन योजना" की शुरुआत की गई थी। इस योजना का लक्ष्य वंचित वर्गों को विभिन्न वित्तीय सेवाएं जैसे मूल बचत खाते की उपलब्धता, विप्रेषण सुविधा, बीमा, आवश्यकता आधारित ऋण की उपलब्धता तथा पेंशन सेवाएं सुनिश्चित करना था। परंतु विभिन्न बैंकों के आगे ऊँची-ऊँची सीढ़ियां, बेतरतीब रास्तों को देख करके ऐसा नहीं लगता कि दिव्यांगजनों को "जन धन योजना" के अंतर्गत समावेशी बैंकिंग का लाभ मिल पाएगा।
सन 2015 में दिव्यांग व्यक्तियों को समान अवसर सुनिश्चित करने, आत्मनिर्भर बनाने और जीवन के हर क्षेत्र में पूर्ण रूप से भाग लेने में सक्षम बनाने हेतु "सुगम्य भारत अभियान" का आरंभ किया गया। इस अभियान के अंतर्गत एक समावेशी समाज की परिकल्पना की गई जिसमें दिव्यांग व्यक्ति सुगमता से कहीं भी आ जा सके।
परंतु इन दोनों योजनाओं के बाद भी दिव्यांग जनों के लिए समावेशी बैंकिंग सेवा उपलब्ध नहीं हो पाई है। बहुत सारी ऐसी बैंक शाखाएं हैं, जहां आगे से सीढ़ियां हैं या सकरे रास्ते हैं। यहां हमारे दिव्यांग कैसे आ-जा सकते हैं?
विकलांग जन कल्याण अधिनियम, 1995 की धारा 44 और 45 में परिवहन, सड़क और निर्मित वातावरण में समान अवसरों की बात की गई थी। विकलांग व्यक्तियों के अधिकार पर UN कन्वेंशन के अनुच्छेद 9, जिसका भारत एक हस्ताक्षरकर्ता है उसमें सरकार को दिव्यांगजनों के लिए सूचना, परिवहन, भौतिक वातावरण, संचार तकनीक, सेवाओं और आपातकालीन सेवाओं तक दिव्यांग व्यक्तियों की पहुंच सुनिश्चित करने का प्रावधान था। परंतु जिस बैंकिंग सेवा के आधार पर देश की समस्त आर्थिक गतिविधियां नियंत्रित होती हैं उस तक दिव्यांगजनों की पहुंच सुनिश्चित करने में सरकार असफल रही है। "दिव्यांग कल्याण अधिनियम, 2016" की धारा 45(1) में कहा गया है कि सभी सरकारी भवनों को दिव्यांगजनों के आने जाने के लिए बाधा रहित होना चाहिए। परंतु भारत जैसे एक देश में जहां सभी बैंक राष्ट्रीकृत हैं, वहां सरकार के स्पष्ट दिशा निर्देशों के बावजूद सुगमता की समस्या समझ से परे है।
एक दिव्यांग मेडिकल छात्रा द्वारा दायर की गई याचिका में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को जून 2019 तक सभी सरकारी भवनों को दिव्यांग जनों के आने जाने हेतु सुलभ और सुगम बनाने का निर्देश दिया था। परंतु वर्तमान परिदृश्य को देखते हुए यह किसी सपने से कम नहीं लगता।