मौत से नहीं दर्द से डर लगता है...?

अपनी बात-अरुण सिंह भीमा

मौत से नहीं दर्द से डर लगता है...? जी हां मुझें मौत से नहीं लगता डर।कब मौत आ जायें कुछ कहां नहीं जा सकता।मौत तो कोई ना कोई बहाना ले कर ही आती हैं।जिंदगी तो वेवफा हैं एक दिन ठुकरायेगी... मैं भली भांति जनता हूँ मैं किस चौराहे पर खड़ा हूँ और न जाने कब सांसों की धड़कने बन्द हो जायेगी।डर,भय,साहस दुःसाहस से आदि हो चुका हूँ।मौत आएगी तो आएगी कौन रोकेगा।बस अपना काम और कर्म करतें रहना हैं। बस अब डर लगता हैं तो सिर्फ़ दर्द से...रोज असहनीय दर्द से पूरी शरीर कांप उठता हैं।दर्द जब बढ़ता हैं तो उसकी पीड़ा बर्दाश्त नहीं होती।ऊपर वाले से यहीं मनातें हैं हैं कि तू मौत दे दे पर दर्द न दे अब बर्दास्त नहीं होता..। वक्त न जाने किस मोड़ पर ला कर खड़ा कर दिया हैं।मौत के बाद मेरे पीछे कौन रोने वाला हैं जो रोना वाली थी इस दुनियां अब वह भी साथ छोड़ कर चली गई हैं।कुछ लोग हैं जो मुझें बेहत चाहतें हैं कुछ दिन याद करेंगे फिर अच्छा व बेचारा इन्शान कह कर भूल जाएंगे।शायद दुनियां की नित भी यहीं हैं।ईश्वर भी गजब का इम्तिहान लेता हैं।एक दर्द अभी कम हुआ ही नहीं था कि दूसरा दर्द दे दिया। तो फिर कह रहा हूँ कि ...मौत से नहीं दर्द से दर्द होता हैं....



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