गोरखपुर से गाज़ियाबाद तक दिखा समावेशी नेतृत्व का प्रभाव, हर वर्ग में मिल रहा जनसमर्थन

1 मई, उत्तर प्रदेश की राजनीति में इन दिनों एक नाम विशेष चर्चा में है—**ए.के. शर्मा**। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पूर्व सहयोगी और वर्तमान में प्रदेश के ऊर्जा एवं नगर विकास मंत्री, शर्मा ने अब सिर्फ प्रशासनिक कुशलता नहीं, बल्कि जननेता के रूप में भी अपनी एक सशक्त पहचान बना ली है।
गोरखपुर से गाज़ियाबाद तक**, हाल के दो आयोजनों में जनता और जनप्रतिनिधियों ने जिस तरह से उनका स्वागत किया, उसने यह स्पष्ट कर दिया कि ए.के. शर्मा अब जाति, क्षेत्र और राजनीतिक सीमाओं से परे **सर्वसमाज में स्वीकृत नेता** बनते जा रहे हैं।
गोरखपुर में अभूतपूर्व जनसैलाब
27 अप्रैल को गोरखपुर में आयोजित "वन नेशन, वन इलेक्शन" संगोष्ठी में पूर्वांचल की आत्मा जैसे सड़कों पर उतर आई थी। विभिन्न जातियों, समुदायों और राजनीतिक पृष्ठभूमियों से जुड़े हजारों लोग ए.के. शर्मा के स्वागत में घंटों खड़े रहे। इस भीड़ में न केवल स्थानीय लोग, बल्कि दूरदराज़ से आए कार्यकर्ता और नेता शामिल थे—जिनमें बस्ती के विधायक अजय सिंह, सहजनवा के प्रदीप शुक्ला, मेंहदावल के अनिल त्रिपाठी, और धानकट्टा के एससी विधायक गणेश चौहान प्रमुख रहे।
**1000 से अधिक वाहनों के काफिले** ने शहर की रफ्तार थाम दी, और गोरखनाथ मंदिर में की गई उनकी आध्यात्मिक यात्रा ने धार्मिक भावनाओं से भी जनता को जोड़ा।
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### **गाज़ियाबाद में दिखी राजनीतिक एकता की नई तस्वीर**
30 अप्रैल को गाज़ियाबाद में भगवान परशुराम जयंती का आयोजन **राजनीतिक एकता और जनसमर्थन का अनूठा उदाहरण** बन गया। आमतौर पर आपसी खींचतान के लिए चर्चित भाजपा के गाज़ियाबाद गुट इस आयोजन में एक साथ नज़र आए—सांसद अतुल गर्ग, मंत्री सुनील शर्मा, महापौर सुनीता दयाल और विधायक नंदकिशोर गुर्जर सब मंच साझा करते दिखे।
**500 से अधिक वाहनों की शोभायात्रा** और लोगों की आत्मीय भागीदारी ने यह दर्शाया कि अब शर्मा केवल प्रशासनिक चेहरा नहीं, बल्कि **राजनीतिक और सांस्कृतिक नेतृत्वकर्ता** के रूप में स्वीकार किए जा रहे हैं।
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### **भाषण में समग्रता का संदेश, सभी वर्गों से भावनात्मक जुड़ाव**
ए.के. शर्मा का भाषण इस आयोजन की आत्मा बना। हिंदुत्व, राष्ट्रवाद, सनातन संस्कृति, सामाजिक समरसता और समग्र विकास जैसे विषयों पर बोले गए उनके शब्दों ने **ब्राह्मण, त्यागी, भूमिहार, ओबीसी और एससी समुदायों** को एक साझा मंच पर खड़ा कर दिया।
खास बात यह रही कि उन्होंने परशुराम जयंती के मंच से न केवल परंपरा की बात की, बल्कि **भविष्य की राजनीति में समावेशिता की आवश्यकता** को भी रेखांकित किया।
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### **‘बीच की बात’ और उभरता हुआ संदेश**
इस आयोजन की सबसे उल्लेखनीय बात यह रही कि **मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री या राष्ट्रीय अध्यक्ष की अनुपस्थिति में** भी जिस स्तर की भागीदारी और ऊर्जा देखने को मिली, वह किसी साधारण नेता के लिए संभव नहीं। यह संदेश था कि ए.के. शर्मा अब **जनता और पार्टी दोनों के लिए स्वाभाविक नेतृत्व विकल्प** बनते जा रहे हैं।
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### **एक समावेशी नेतृत्व की ओर बढ़ता उत्तर प्रदेश**
गोरखपुर से गाज़ियाबाद तक की यह यात्रा केवल भौगोलिक नहीं थी—यह **राजनीतिक स्वीकार्यता, सामाजिक समावेश और नेतृत्व की परिपक्वता की यात्रा थी। ए.के. शर्मा की शैली सादगी से भरी है, लेकिन उसका प्रभाव दूरगामी है।
आज जब उत्तर प्रदेश की राजनीति बार-बार ध्रुवीकरण का शिकार होती है, ऐसे में शर्मा की छवि एक **संयोजक और सकारात्मक नेतृत्व के रूप में लोगों को आशा देती है।
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"नेतृत्व वह होता है जो न केवल बोलता है, बल्कि जोड़ता है। ए.के. शर्मा अब उत्तर प्रदेश के राजनीतिक परिदृश्य में वही पुल बनते जा रहे हैं, जो हर वर्ग, हर तबके और हर कोने को एक साथ जोड़ता है।”**