प्रोफेसर तुलसीराम पहुंचे मऊ, मार्क्स बौद्ध दर्शन और लोकायत पर किया बृहद चर्चा

13फरवरी, मऊ राहुल सांकृत्यायन सृजनपीठ व जन संस्कृति मंच के संयुक्त तत्वावधान में प्रो. तुलसीराम स्मृति व्याख्यानमाला के क्रम में भारतीय चिंतन परंपरा की वैकल्पिक धारा विषय पर डा. जयप्रकाश धूमकेतु की अध्यक्षता में एक गोष्ठी का आयोजन राहुल सांकृत्यायन सृजन पीठ के सभागार, भुजौटी, में हुआ।

लेखक व चिंतक डॉ. रामायन राम ने आधार वक्तव्य में कहा कि प्रो. तुलसीराम ने बौद्ध दर्शन, मार्क्सवाद, लोकायत व चार्वाक दर्शन को अपने साहित्य का आधार बनाया। साहित्य के क्षेत्र में उनकी लेखनी का रेंज बहुत अधिक है। प्रो. तुलसीराम का साहित्य उनके जीवन संघर्ष की गाथा है।उनका जन्म आजमगढ़ के जहानागंज के पास धरमपुर गांव मे हुआ था।

यहां से निकल कर वे बनारस हिंदू विवि होते हुए जेएनयू तक पहुंचे और वहीं प्रोफेसर नियुक्त हुए। उन्होंने भारतीय दर्शन की वैदिक व सनातन धारा के समानान्तर चार्वाक, लोकायत, बौद्ध दर्शन तथा मध्य काल के निर्गुण ब्रह्म की परिकल्पना करने वाले दार्शनिक प्रणालियों का विस्तृत अध्य्यन किया था। इसके साथ वे मार्क्सवाद के गंभीर अध्येता थे। आज जब वैदिक परंपरा को ही भारतीय चिंतन का एक मात्र पर्याय बताया जा रहा है ऐसे समय में प्रो.तुलसी राम के चिंतन को आम जन तक पहुंचाना बहुत जरूरी है। मुख्य वक्ता प्रख्यात दलित चिंतक कंवल भारती ने कहा कि मनुष्यों का परीक्षण डॉ सिद्धांतों पर करना चाहिए एक न्याय का सिद्धांत व दूसरा उपयोगिता का सिद्धांत। उपनिषदों के द्वारा समाज में एक बड़ी क्रांति हुई उपनिषदों का आत्मवाद, मानवतावाद पर आधारित है। अंत में कंवल भारती ने कहा कि भारत में सनातन धर्म को वैकल्पिक तौर पर थोपा जा रहा है। वक्तव्य के क्रम में डॉ. प्रियंका सोनकर (बी.एच.यू.) ने कहा कि पूरा दलित साहित्य गौतम बुद्ध से अपनी ऊर्जा लेता है। बुद्धिजीवी होने के साथ-साथ हमें अपने अधिकारों को जानना चाहिए और अपना दीपक स्वयं बनाना चाहिए। सत्यम ने बताया कि आज के समाज में बहुजन समाज के संघर्ष की गाथा मुर्दहिया की संघर्ष गाथा है। पूर्व प्रो. दीपक मलिक ने कहा कि तुलसीराम के गठन में इस इलाके का महत्वपूर्ण योगदान है। क्योंकि एक समय में यह क्षेत्र जहां यह कार्यक्रम हो रहा है मार्क्सवाद का गढ़ रहा है। जिसे हम वैकल्पिक धारा कह रहे हैं असल में इन वैकल्पिक धाराओं का सामूहिक रूप है जो नई धारा के रूप में हमारे सामने आनी चाहिए और लोगों को जोड़ने के लिए तुलसीराम के साहित्य को हथियार के रूप में प्रयोग करना चाहिए। आधुनिक भारत बनाने की जगह जो हिन्दू राष्ट्र बनाने का विकल्प दिया जा रहा है वह कहीं से ठीक नहीं भारतीय राज व्यवस्था में ऐसी कोई अवधारणा थी ही नहीं। चक्रवर्ती सम्राट की अवधारणा थी जो साम्राज्यवादी थी। आज हमें तुलसीराम के व्यापक दृष्टि से जुडने की जरूरत है। पूर्व जिला विद्यालय निरीक्षक शिववचन राम ने कहा कि सारा का सारा दलित जीवन ही नहीं पूरा भारत ‘मुर्दहिया’ से होकर गुजर रहा है। जहां से उच्च समाज का जीवन समाप्त होता है उसी स्याह स्थल से दलित समाज का जीवन शुरू होता है। भारतीय चिंतन परंपरा की स्थूल चर्चा की जाए तो केवल दो धाराएं हैं एक अवैज्ञानिक व दूसरी वैज्ञानिक। भारत का इतिहास इन दो धाराओं की टकराहट का है। जन संस्कृति मंच के राष्ट्रीय महासचिव मनोज कुमार सिंह जी ने अपने वक्तव्य में बताया आज हमारे स्मृतियों पर हमला किया जा रहा है। सच्ची स्मृतियों के प्रतिरोध में झूठी और कॉल-कल्पित स्मृतियों को थोपने का काम चल रहा है। जिसको लेकर हमें सचेत रहना चाहिए। उन्होंने ये भी कहा कि मोटे तौर पर समाज में दो धाराएं चल रही है। एक धारा में असमानता के समर्थक हैं तो दूसरी में समानता के। अशोक चौधरी ने आज की चुनौतियों से लड़ने की बात कही। अध्यक्षीय उद्बोधन में डॉ. जयप्रकाश धूमकेतु ने कहा कि यह तय करने की जरूरत है कि कौन किस ओर है। आदमखोर के साथ या आदमी के साथ। आए हुए अतिथियों का आभार ओमप्रकाश सिंह ने किया।

इस व्याख्यानमाला में पूर्व विधायक कामरेड इम्तेयाज अहमद,ओमप्रकाश सिंह, वीरेंद्रकुमार, शैलेंद्र कुमार, बसंत कुमार,सिकंदर, अरविंद मूर्ति,राम भवन, संजय राय,प्रमोद राय, समसुहक चौधरी, रामप्यारे राय, डॉ. सरफराज (वरिष्ठचिकित्सक), डॉ. रामविलास भारती, डॉ. गोपाल , फौजिया, डॉ.तेजभान तेज, डॉ. रामशिरोमणि, डॉ. धनंजय शर्मा, गुलाब,मुन्नू राम,ब्रिकेश यादव ,फकरे आलम जी, प्रद्युम्न यादव, डा. निर्मल भारद्वाज,डी.पी. सोनी, विद्या मौर्या,उपस्थित रह



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