प्रख्यात व्यंगकार हरिशंकर परसाई की शताब्दी वर्ष मनाई गई

13,सितंबर मऊ
जन संस्कृति मंच एवं राहुल सांकृत्यायन सृजन पीठ के तत्वाधान में ख्यात व्यंगकार हरिशंकर परसाई शताब्दी वर्ष के अवसर पर सृजन पीठ के सभागार में "आज का समय और हरिशंकर परसाई का साहित्य" विषय पर एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। गोष्ठी में रवींद्र भारती विश्वविद्यालय कोलकाता से आए इतिहास विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर डॉ. हितेंद्र पटेल व स्नातक पर स्नातक शोधार्थी छात्र, छात्राएं भी शामिल रहे।
आए हुए मेहमानों का स्वागत करते हुए राहुल सांकृत्यायन सृजन पीठ के ट्रस्टी व अभिनव कदम के संपादक जयप्रकाश धूमकेतु ने कहा कि हरिशंकर परसाई ने अपने गर्दिशी दिनों में व्यंग को ही हथियार बनाया। "गर्दिश के दिन" में परसाई लिखते हैं कि यहीं कहीं व्यंग लेखक का जन्म हुआ। मैंने सोचा होगा,रोना नहीं है लड़ना है, जो हथियार हाथ में है उसी से लड़ना है। मैंने तब ढंग से इतिहास, समाज, राजनीति और संस्कृत अध्ययन शुरू किया साथ ही एक औघड़ व्यक्तित्व बनाया और गंभीरता से व्यंग लिखना शुरू किया। कबीर की छाया परसाई के ऊपर बराबर बनी रही।सुखिया सब संसार है, खावै और सोवै। दुखिया दास कबीर है जागे और रोवै।परसाई कहते हैं घड़े खरीदने वाले तो समाज में हैं पर पुस्तक खरीदने वाले नहीं है। शासन का पिछलग्गू साहित्य समाज को पतन की ओर ले जाता है। आलोचना को परसाई ने "निंदा सबद रसाल" कहा है। आज विश्व बाजारिकरण के दौर पर मिलावट की सभ्यता में परसाई जी ने महाजनी सभ्यता के चरित्र का चित्रण सही ढंग से किया है।
गोष्ठी के मुख्य वक्ता रवींद्र भारती विश्वविद्यालय कोलकाता से आए इतिहास विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर डा. हितेंद्र पटेल ने अपना विचार रखते हुए कहा कि हरिशंकर परसाई असली भारत से जुड़े लेखक थे। वह समाज और राजनीति के जरूरी प्रश्नों से टकराते रहे. अपनी लेखकीय दूरदृष्टि के चलते परसाई जी आज भी प्रासंगिक हैं। स्वतंत्रता आंदोलन और परिवर्ती समय का विश्लेषण करने पर ज्ञात होता है कि नेहरू का अपहरण हुआ है और गांधी का अधिग्रहण।आजादी और उसके बाद के असली भारत के परिप्रेक्ष्य को नए व सही ढंग से इतिहास में लिखा एवं समझा जाना चाहिए।
बनारस से आए गोष्ठी के विशिष्ठ वक्ता साहित्यकार शिवकुमार पराग ने कहा की हरिशंकर परसाई का व्यंग्य मनुष्य को सोचने के लिए बाध्य करता है। वह हमारी चेतना को जागृत करता है। परसाई जी, सच कहें तो हिंदी गद्य के कबीर थे। वे लेखन से अन्याय का प्रतिरोध करते हैं और लोकतंत्र के मूल्य की रक्षा के लिए संघर्ष करते हैं।
विशिष्ठ वक्ता डॉ.संजय राय प्राचार्य रामधन दामोदर पी जी कालेज कसारा ने आधार वक्तव्य रखते हुए कहा कि परसाई की विशेषता है कि वे स्वतंत्रता संग्राम को स्वतंत्रोतर काल में परिप्रेक्ष्य प्रदान करते हैं। बात यह है कि वह उस जनता से प्रतिबद्ध हैं जिसने आजादी की लड़ाई में बुनियादी काम किया। आजादी आई लेकिन उस जनता के लिए नहीं। संघर्ष जारी रहा। जनता के प्रति इसी लगाव से परसाई के व्यंग्य की धार और दिशा निर्धारित होती है। वह जनता के दुश्मनों और विरोधियों के खिलाफ संघर्ष करते हैं इसलिए उन्हें व्यंग्य का निशाना बनाते हैं। इस अर्थ में परसाई का लेखन स्वतंत्रता संग्राम के निस्तरता की अभिव्यक्ति है।
समकालीन सोच गाजीपुर से आए नगीना कुशवाहा ने अपने अध्यक्षीय संबोधन मे कहा कि कभी राजतंत्र धर्म की अवधारणा से समर्थन पाता था आज नव साम्राज्यवाद तमाम अस्मिताओं को जगा कर उसकी आड़ में अपनी सुरक्षा पाता है। इसी आवरण को भेदता हुआ हरिशंकर परसाई का साहित्य है।
गोष्ठी का संचालन बृजेश गिरि व बसंत कुमार ने गोष्ठी मे आए हुए मेहमानों का आभार प्रकट किया। गोष्ठी में कोलकाता से आए हुए शोध छात्राओं ने बांग्ला भाषा में रवींद्र गीत भी प्रस्तुत किया। गोष्ठी का आरंभ जितेन्द्र मिश्र काका के व्यंग कविता पाठ से हुआ।
गोष्ठी में प्रमुख रूप से प्रगतिशील लेखक संघ के जिला सचिव एके मिश्रा, मनोज सिंह, धनंजय मौर्य, फकरे आलम, राम शिरोमणि मौर्य जितेंद्र मिश्र काका, डा.चंद्रभान,अरविंद मूर्ति, वीरेंद्र कुमार समसुहक चौधरी, मरछू प्रजापति, बृकेश यादव विष्णु राजभर, अतुल कुमार सिंह, रमेश सिंह व रवीद्र भारती विश्वविद्यालय के दर्जनों शोधार्थी छात्र शामिल रहे।
