बीजेपी सरकार में कैसे मिली हत्या मामले में सजा याफ्ता अमरमणी त्रिपाठी को जेल से रिहायी!

बहुचर्चित मधुमिता शुक्ला हत्याकांड एक बार फिर चर्चा में आ गया है. हत्याकांड में उम्रकैद की सजा काट रहे पूर्व मंत्री अमरमणि त्रिपाठी और उनकी पत्नी मधुमणि त्रिपाठी को उत्तर प्रदेश सरकार ने गुरुवार को रिहा करने का आदेश दे दिया. इस आदेश को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई जिस पर रोक लगाने से कोर्ट ने इनकार कर दिया. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार को नोटिस भी जारी किया है.

बहुचर्चित मधुमिता शुक्ला हत्याकांड एक बार फिर चर्चा में आ गया है. हत्याकांड में उम्रकैद की सजा काट रहे पूर्व मंत्री अमरमणि त्रिपाठी और उनकी पत्नी मधुमणि त्रिपाठी को उत्तर प्रदेश सरकार ने गुरुवार को रिहा करने का आदेश दे दिया. इस आदेश को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई जिस पर रोक लगाने से कोर्ट ने इनकार कर दिया. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार को नोटिस भी जारी किया है.

Madhumita Shukla Case: क्या था मधुमिता हत्याकांड, राजनीतिक गलियारों में अमरमणि के बढ़ते प्रभाव पर कैसे लगा ग्रहण?

दोषियों की रिहाई पर विपक्षी दल राज्य सरकार पर सवाल उठा रहे हैं. जबकि, प्रशासन अच्छे आचरण के आधार पर दोनों की रिहाई की बात कर रहा है. इस बीच, हमें जानना जरूरी है कि आखिर पूरा मामला क्या है? हत्याकांड में अब तक क्या-क्या हुआ? दोषी कौन-कौन हैं? दोषियों की रिहाई क्यों हुई? मामला सुप्रीम कोर्ट तक कैसे पहुंचा? आइये समझते हैं…

आखिर पूरा मामला क्या है?

तारीख थी नौ मई और साल 2003, लखनऊ में निषादगंज थाने से कंट्रोल रूम में फोन आता है कि पेपर मिल कालोनी में किसी महिला की गोली मारकर हत्या कर दी गई. पहले पुलिस को लगा कि लूट का मामला होगा, लेकिन जैसे ही तहकीकात आगे बढ़ी, एक से बढ़कर एक खुलासे होने लगे और उत्तर प्रदेश की राजनीति में हड़कंप मच गया.
हत्या जिस महिला की हुई थी वह कोई साधारण महिला नहीं, बल्कि एक मशहूर कवयित्री मधुमिता शुक्ला थीं. राजनीतिक महकमे में मधुमिता शुक्ला की अच्छी पैठ थी. इस हत्या में शामिल जिस व्यक्ति का नाम आया वह और भी चौकाने वाला था. वह नाम था अमरमणि त्रिपाठी का. अमरमणि त्रिपाठी का उत्तर प्रदेश की राजनीति में ऐसा दबदबा रहा है कि सरकार किसी भी पार्टी की हो, कैबिनेट में उनकी जगह पक्की रहती थी.

इस वजह से सीबीआई के पास पहुंचा केस
मधुमिता के शव का पोस्टमार्टम करने के बाद उसके गृह जनपद लखीमपुर भेजा गया. अचानक एक पुलिस अधिकारी की नजर रिपोर्ट पर लिखी एक टिप्पणी पर पड़ी, जिसने इस मामले की जांच की दिशा बदल दी. दरअसल, रिपोर्ट में मधुमिता के गर्भवती होने का जिक्र था.
तत्काल शव को रास्ते से वापस मंगवाकर दोबारा परीक्षण कराया गया. डीएनए जांच में सामने आया कि यह बच्चा अमरमणि का था. निष्पक्ष जांच के लिए विपक्ष के बढ़ते दबाव की वजह से तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती के नेतृत्व वाली बसपा सरकार को आखिरकार इस मामले की जांच सीबीआई से कराने की संस्तुति करनी पड़ी.

सीबीआई जांच में खुली परतें
सीबीआई ने इस मामले की जांच शुरू की तो अमरमणि और उनकी पत्नी की संलिप्तता के पुख्ता प्रमाण मिले. इसके बाद अमरमणि को गिरफ्तार कर लिया गया. अमरमणि से राजधानी के डालीबाग स्थित स्टेट गेस्ट हाउस में रिमांड पर लेकर पूछताछ की गई. वहीं, मधुमणि नेपाल भाग गई और कई दिनों तक सीबीआई उसकी तलाश करती रही. इसी तरह मधुमिता का नौकर देशराज भी कई दिन तक फरार रहा. बाद में सीबीआई ने उसे लखनऊ से गिरफ्तार कर लिया. देशराज ने अमरमणि और मधुमिता के रिश्तों के बारे में खुलासा किया तो पूरे मामले की परतें उधड़ती चली गईं. जांच में सामने आया कि अमरमणि से मधुमिता के रिश्तों से नाराज होकर हत्या की साजिश मधुमणि ने रची थी.

हत्याकांड के चार साल बाद चार लोग दोषी करार

सीबीआई जांच के दौरान भी गवाहों को धमकाने के आरोप लगे तो मुकदमा देहरादून की फास्ट ट्रैक कोर्ट स्थानांतरित कर दिया गया. इस हत्याकांड के बाद देहरादून की फास्ट ट्रैक कोर्ट ने 24 अक्टूबर 2007 को अमरमणि, उसकी पत्नी मधुमणि, भतीजे रोहित चतुर्वेदी और शूटर संतोष राय को दोषी करार देते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई. एक अन्य शूटर प्रकाश पांडेय को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया गया. हालांकि, बाद में नैनीताल हाईकोर्ट ने प्रकाश पांडेय को भी दोषी पाते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई थी जो अब जमानत पर बाहर है.
यूपी सरकार ने क्यों की दोषियों की रिहाई?

अमरमणि और पत्नी मधुमणि बीते 20 वर्ष एक माह और 19 दिन से जेल में थे. उनकी आयु, जेल में बिताई गई सजा की अवधि और अच्छे जेल आचरण के दृष्टिगत बाकी बची हुई सजा को यूपी सरकार ने माफ कर दिया. इस पर मधुमिता की बहन निधि ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी. इस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी किया और आठ हफ्ते के अंदर जवाब मांगा है.

कैसे बढ़ा अमरमणि का सियासी दखल?

जेल जाने से पहले अमरमणि कई सियासी दलों में रह चुके हैं. त्रिपाठी ने 1996 में पहली बार कांग्रेस से नौतनवां से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. 1997 में वह कांग्रेस को छोड़कर लोकतांत्रिक कांग्रेस में शामिल हुए और फिर कल्याण सिंह की सरकार में मंत्री बना दिए गए.

इस दौरान अपहरण के एक मामले में नाम आने पर उन्हें मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया गया. इसके बाद त्रिपाठी ने अपने सियासी रसूख को कायम रखने के लिए बसपा का दामन थाम लिया. उसके बाद वह समाजवादी पार्टी का दामन थाम कर मुलायम सिंह की सरकार में उत्तर प्रदेश के एक बार फिर से मंत्री बन गए.

हत्याकांड पर डिस्कवरी ने बनाई वेबसीरीज

बहुचर्चित मधुमिता शुक्ला हत्याकांड को लेकर एक वेब सीरीज भी बनी. दरअसल, डिस्कवरी प्लस चैनल ने चर्चित हत्याकांड पर ‘लव किल्स: मधुमिता शुक्ला हत्याकांड’ सीरीज बनाई थी. यह डॉक्यूमेंट्री सीरीज इसी साल नौ फरवरी से ओटीटी प्लेटफॉर्म डिस्कवरी+ पर स्ट्रीम की गई थी.

इसमें हत्या, धोखा, झूठ और राजनीतिक साजिश जैसी हर चीज इस सीरीज में दिखाई गई, जिसने इस सनसनीखेज अपराध को अंजाम तक पंहुचाया. मामले की मुख्य वादी मधुमिता की बहन निधि शुक्ला हैं. निधि 20 साल से लगातार न्याय के लिए संघर्ष कर रही हैं. इन संघर्षो को भी डिस्कवरी प्लस ने अपनी वेब सीरीज में दिखाया है.



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