पत्रकारों के अधिकारों की रक्षा पर उच्च न्यायालय का कड़ा रुख

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण आदेश में कहा है कि पत्रकारों के खिलाफ केवल इस आधार पर आपराधिक मामले नहीं चलाए जा सकते कि उनकी लेखनी सरकार की आलोचना के रूप में मानी जाती है। न्यायालय ने यह आदेश एक पत्रकार के खिलाफ दर्ज मामले के संबंध में दिया, जिसमें पत्रकार पर उनकी लेखनी के कारण आपराधिक कार्यवाही शुरू की गई थी।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण आदेश में कहा है कि पत्रकारों के खिलाफ केवल इस आधार पर आपराधिक मामले नहीं चलाए जा सकते कि उनकी लेखनी सरकार की आलोचना के रूप में मानी जाती है। न्यायालय ने यह आदेश एक पत्रकार के खिलाफ दर्ज मामले के संबंध में दिया, जिसमें पत्रकार पर उनकी लेखनी के कारण आपराधिक कार्यवाही शुरू की गई थी।

आदेश में उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि लोकतांत्रिक राष्ट्रों में विचारों की अभिव्यक्ति का सम्मान होना चाहिए। अदालत ने कहा, "भारत के संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत पत्रकारों के अधिकार संरक्षित हैं, और केवल इस आधार पर कि उनकी लेखनी को सरकार की आलोचना के रूप में देखा जाता है, उनके खिलाफ आपराधिक मामला नहीं चलाया जा सकता।"

अदालत ने इस मामले में चार हफ्तों में नोटिस जारी करने का निर्देश दिया और कहा कि इस दौरान याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जाएगी। साथ ही, उत्तर प्रदेश राज्य के स्थायी वकील को "दस्ती नोटिस" भी भेजने का आदेश दिया गया है। इस आदेश को प्रेस की स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है। पत्रकारिता जगत में इसे एक अहम जीत के रूप में देखा जा रहा है, जो यह सुनिश्चित करता है कि पत्रकारों की आवाज़ दबाने के लिए उनके खिलाफ आपराधिक कानूनों का दुरुपयोग नहीं किया जा सकेगा।



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