मानवीय संवेदना मरती जा रही...?

प्रदीप पाण्डेय

इस तस्वीर में यह चील अपना शिकार बनाने के लिए बच्चे के मरने का इन्तजार कर रहा, यह तस्वीर अपने समय की पुरस्कृत तस्वीर है यह तस्वीर लेने वाले की संवेदना शायद मर गयी थी अन्यथा इस बच्चे को बचाया जा सकता था लेकिन बाद में लोगों के तानों ने उसके गलती का एहसास कराया और तस्वीर लेने वाले व्यक्ति ने आत्म हत्या कर ली। लेकिन आज हमारे माननीय लोगों में दिखावे के इस दौर में वह संवेदना भी मर गयी है,माननीय लोग अपने पुरे लाव लश्कर और गाड़ियों का काफिला लेकर अस्पताल भ्रमण पर जा रहे हैं फोटो खिंचवाने, उनके दिमाग में यह बात जरा सी भी नहीं है कि इससे उन मासुम बच्चों का इलाज कर रहे डाक्टर,अस्पताल के कर्मचारियों, मरीजों के अभिभावक को कितनी दिक्कतों का सामना करना पडता होगा। दौरा करना ही है साहब उन क्षेत्रों का किजिए जहाँ जागरूकता की आवश्यकता है, जहाँ मौतें रोकी जा सकती हैं, अस्पतालों की सुविधाएँ बढाइये साहब। उन माता पिता का दर्द महसूस किजिए जिनके घरों के चिराग बुझ रहे हैं। शर्म आती है ऐसी दिखावटी हमदर्दी से, घिन्न आती है बच्चों के मौत पर लोकप्रियता प्राप्त करने वालों से, इस व्यवस्था प्रणाली से।



अन्य समाचार
फेसबुक पेज