लोकतंत्र में बहुमत का महत्व एवं सबका साथ, सबके विकास और सबका विश्वास पर विशेष


सम्पादकीय - भोलानाथ मिश्रा
वरिष्ठ पत्रकार/समाजसेवी

साथियों,
सुप्रभात/वंदेमातरम/गुडमार्निंग/नमस्कार/अदाब/शुभकामनाएं।।
जैसा कि सभी जानते हैं कि प्रजातंत्र में लोकतंत्र को मजबूती तभी मिलती है जब उस देश के वासी अपने मनचाहा, अपने अगुवा, अपने राजा, अपने संरक्षक का चुनाव करके उसे सरकार चलाने का अधिकार देते हैं और इसी को जनादेश भी कहा जाता है। कहते हैं कि जिस देश की जनता सर्व सम्मत से अपना अगुआ अथवा अपना प्रतिनिधि चुन लेती है वहां का लोकतंत्र दिन दूनी रात चौगुनी गति से फलता फूलता और प्रजातांत्रिक व्यवस्था को मजबूती प्रदान कर देश को बुलंदियों तक पहुंचाता रहता है। लोकतंत्र में संख्या बल यानी बहुमत का बहुत महत्व होता है और जिसके पास संख्या बल यानी बहुमत होता है वहीं लोकतंत्र में सरकार बनाने और चलाने का हकदार होता है। वह सरकार चाहे देश की सर्वोच्च पंचायत हो, चाहे गांव की सबसे छोटी ग्राम पंचायत हो, लोकतंत्र की स्थापना होने के बाद से लेकर अब तक देश में तमाम सरकारों का गठन बहुमत के आधार पर हो चुका है लेकिन इसे दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि आजादी के बाद हमारे देश में सरकार गठन के समय क्षेत्रीय मतों को बहुमत से जोड़कर देश की सरकार का गठन कर दिया जाता है और उसे गठबंधन का नाम दे दिया जाता है। देश की सरकार चलाने के लिए पूरे देश की जनता की राय जनादेश के रूप में लेना राष्ट्रीय सरकार के गठन के लिए आवश्यक है क्योंकि केंद्र की सरकार पूरे देश की संस्कृत सभ्यता एवं समस्याओं के लिए काम करती है। ऐसा नहीं है कि हमारे देश में इससे पहले स्पष्ट जनादेश नहीं आए हैं लेकिन जिस तरह का जनादेश इस बार 2019 के लोकसभा चुनाव में आए हैं वह अपने आप में अभूतपूर्व, अप्रत्याशित, लोकतंत्र हितकारी माने जा रहे हैं।

ऐसा देखा गया है कि गठजोड़ करके बहुमत वाली सरकार बहुत कार्य चाहकर भी नहीं कर पाती है क्योंकि उसमें गठबंधन के सभी लोगों की संतुष्टि आवश्यक होती है। इस तुष्टीकरण राजनीति के चलते आज हमारे देश में तमाम तरह की समस्याएं खड़ी हो गई हैं जिनसे हमारी राष्ट्रीय एकता अखंडता प्रभावित होने लगी है। पिछले 48 वर्षों में यह पहला अवसर है जबकि प्रधानमंत्री मोदी की अगुवाई में भाजपा ने स्पष्ट बहुमत से अपनी पार्टी के बल पर सरकार बनाने का जनादेश प्राप्त किया है। आपको याद होगा 1997 में संख्या बल कम होने के कारण प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देते समय तत्कालीन प्रधानमंत्री स्वर्गीय पंडित अटल बिहारी बाजपेई ने सदन में कहा था कि आज भले ही हम संख्या बल कम होने के नाते इस्तीफा दे रहे हो और लोग हमें हंस रहे हो लेकिन एक दिन वह आएगा जबकि भाजपा संख्या बल के आधार पर सरकार बनाएगी और जो लोग आज हंस रहे हैं उनको देश की जनता नकार देगी। इस बार लोकसभा चुनाव के जनादेश से स्पष्ट हो गया है कि जो स्वर्गीय वाजपेई जी ने कहा था वह सच निकला और अटल जी के समय में हंसने वालों को जनता ने नकार दिया है। हम पहले भी कह रहे थे कि इस बार हो रहे लोकसभा के चुनाव अपने आप में ऐतिहासिक अभूतपूर्व इतिहास के पन्नों में स्वर्णिम अक्षरों में लिखने वाला हो रहा है।

आजादी के बाद यह पहला चुनाव है जबकि पिछले चुनाव से हटकर हो रहा है जिसमें जनसंपर्क को महत्त्व न देकर सिर्फ जन सभाओं का सहारा लिया गया है। इतना ही नहीं बल्कि मतदाताओं के एक बड़े वर्ग द्वारा पहली बार किसी राजनीतिक दल को स्पष्ट बहुमत दिया गया है और संपन्न हुए लोकतंत्र के महोत्सव के दौरान लोकसभा चुनाव में किसी एक राजनीतिक पार्टी को समाज के सभी वर्गों संप्रदायों धर्म के लोगों ने विश्वास व्यक्त करते हुए प्रचंड जनादेश दिया है। मतगणना के बाद जो परिदृश्य सामने आया है उससे यह स्पष्ट हो जाता है इस बार भाजपा के पक्ष में समाज के सभी वर्गों के लोगों ने थोड़ा से लेकर ज्यादा तक मतदान अवश्य किया है जिस मुसलमान को भाजपा का दुश्मन बताया जा रहा था, उनके भी एक वर्ग ने भाजपा पर विश्वास व्यक्त किया है और जाति धर्म सम्प्रदाय की खाई समाप्त हो गई है।

इस बार के आए जनादेश को लोकतंत्र के भविष्य के लिए उज्जवल माना जा रहा है क्योंकि जिस दिन इस देश के मतदाता एक राय होकर बहुमत नहीं बल्कि एकमत होकर सरकार बना देंगे उस दिन हम पुनः दुनिया में महाशक्ति बनकर अहिंसा परमो धर्मः एवं विश्व बंधुत्व वाले अखंड भारत की स्थापना कर फिर से विश्व गुरु बन जाएंगे। लेकिन लोकतंत्र में एकमत जनादेश को उचित नहीं माना गया है क्योंकि इससे सरकार के निरंकुश हो जाने का खतरा रहता है। लोकतंत्र में मजबूत विपक्ष का होना आवश्यक माना गया है जो सरकार की खामियों को उजागर करता और मनमानी पर अकुंश लगाकर भय दिखाता रहें। सरकार जब जन अपेक्षाओं एवं भावनाओं के अनुरूप जात पात धर्म सम्प्रदाय राग द्वेष से ऊपर उठकर सभी देशवासियों के हितों को सर्वोपरि मानकर कार्य करती है तो जनता उसे एक नहीं, बार बार सरकार बनाने का जनादेश देती रहती है। शायद यही कारण है कि अपने विकास कार्यों एवं नीतियों के कारण प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में पुनः वापस आने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 के चुनाव में दिए गए अपने मूल मंत्र सबका साथ, सबका विकास के साथ इस बार सबका विश्वास भी जोड़ दिया है।इतना ही नहीं बल्कि अपने कार्यकर्ताओं से लेकर सांसदों तक से कह दिया है कि सबका दिल जीत जीतो और विश्वास पैदा करो। आजादी के बाद यह पहला अवसर होगा जबकि जाति धर्म संप्रदाय के आधार पर समाज को खंडित करने वाली राजनीति को देश की जनता ने नकार दिया है और मोदी है तो सब कुछ मुमकिन है की बात को मान कर भाजपा को स्पष्ट बहुमत दिया गया है।

प्रधानमंत्री मोदी द्वारा शपथ ग्रहण करने के पूर्व अपने मन की बात हो चाहे मतगणना के बाद कार्यकर्ताओं या सदन में नवनिर्वाचित सांसदों को संबोधित करते हुए कही है वह भी अपने आप में अभूतपूर्व है और नए राजनीतिक परिदृश्य की ओर इशारा करने वाली है। यह सही है कि चाहे ग्राम पंचायत हो, चाहे देश की सबसे बड़ी लोकसभा पंचायत हो, जब तक वहां पर चरित्रवान लोग नहीं रहेंगे तब तक ग्राम पंचायत या देश चरित्रवान नहीं बन सकता है। साथ ही इन पंचायतों से जुड़े लोग जबतक जात पात धर्म संप्रदाय की भावना से ऊपर उठकर गांव या देश हित में प्रस्ताव नहीं पास करते हैं तब तक उस गांव अथवा देश का सर्वांगीण विकास एवं देश की एकता अखंडता की रक्षा नहीं हो सकती है। पंचायत यानी सदन में जनप्रतिनिधियों को यह ध्यान रखना चाहिए कि उसमें ऐसे प्रस्ताव लाये जाए जो बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय वाले लोक कल्याणकारी हो जिनसे सभी गांव अथवा देशवासी नहीं तो कम से कम 12 आने लोग सहमत हों क्योंकि प्रजातंत्र में बहुमत का बहुत महत्त्व होता है।

धन्यवाद।। भूलचूक गलती माफ।



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