लोकतांत्रिक मूल्यों तार तार करती पश्चिम बंगाल की हिंसक घटनाओं पर सख्त चुनाव आयोग


लेख - भोलानाथ मिश्रा
वरिष्ठ पत्रकार/समाजसेवी

साथियों,
वंदेमातरम/नमस्कार/अदाब/शुभकामनाएं।।

आजादी के बाद लोकतंत्र की स्थापना इसलिए की गई थी कि जनता का अपना राज होगा और जनता जिसे चाहेगी उसे अपना राजा बनाएगी और अपने राजा अथवा अपना प्रतिनिधि चुनने के लिए उसे मताधिकार दिया गया था और राजनीति को इसका माध्यम बनाया गया था। राजनीति के तहत राजनीतिक दलों के गठन की व्यवस्था प्रजातांत्रिक व्यवस्था लागू करने के समय की गई थी और सभी जानते हैं कि राजनीति का मतलब जनता की सेवा करके उसकी जुबान बनकर उनकी अपेक्षाओं का प्रतिनिधित्व करना होता है। लोकतंत्र में निष्पक्ष चुनाव सम्पन्न कराने के लिए चुनाव आयोग का गठन किया गया था। जिन लोकतांत्रिक मूल्यों एवं मर्यादाओं को मद्देनजर रखते हुए राजनीति की स्थापना आजादी मिलने के पहले की गई थी वह आजादी के बाद धीरे धीरे वोट की गंदी राजनीति के चलते समाप्त हो रही है और राजनीतिक दलों के राजनेता जनता का प्रतिनिधि बनकर सत्ता तक पहुंचने के लिए सारी अपेक्षाओं को तार-तार कर रहे हैं। गंदी राजनीति का ही फल है कि आज समाज एवं परिवार ख़़डित एवं देश विरोधी तत्वों को संरक्षण मिलने लगा है और जनता के मताधिकार पर डाका डाला जा रहा है।

लोकतांत्रिक राजनीति के परिणाम स्वरूप आज चाहे जम्मू कश्मीर चाहे पश्चिम बंगाल हो देश विरोधी ताकतों के अड्डे बनते जा रहे हैं और जनप्रतिनिधि बनने के लिए हिंसा का सहारा लिया जा रहा है। इस समय हो रहे लोकसभा चुनाव जम्मू कश्मीर एवं पश्चिम बंगाल दोनों चर्चा का विषय बने हुए और दोनों स्थानों पर राजनीति के नाम हिंसा का सहारा लिया जा रहा है। इस समय हो रहे चुनाव में पश्चिम बंगाल चर्चा का विषय बना हुआ है जहां पर सत्ता तक पहुंचने के लिए लोकतांत्रिक मर्यादाओं को तार-तार किया जा रहा है। लोकतांत्रिक मर्यादाओं को कायम रखने के लिए बनाया गया चुनाव आयोग इन राजनेताओं के सामने बेबस होता जा रहा है। लोकसभा चुनाव के अंतिम दौर में पश्चिम बंगाल हो रही बदजुबानी और हिंसा चर्चा का विषय बनी हुई है। चुनाव आयोग लाख प्रयास के बावजूद इस बदजूबानी पर ताला नहीं लगा पा रहा है।

चुनाव आयोग के सख्त रुख के बावजूद ममता बनर्जी जैसी राजनेता अपनी जुबान पर लगाम नहीं लगा रही हालांकि अब चुनाव आयोग ने पश्चिम बंगाल के राजनीतिक माहौल को देखते हुए सख्त कदम उठाए हैं और निष्पक्ष शांतिपूर्ण चुनाव कराने के जिम्मेदार अधिकारियों के विरुद्ध कार्यवाही करते हुए चुनाव प्रचार को समय से दो दिन पहले बंद करने के निर्देश दिए हैं। चुनाव आयोग द्वारा उठाए गए कदम सराहनीय स्वागत योग्य है। वैसे तो चुनाव की शुरुआत होने के बाद से ही हमेशा की तरह पश्चिम बंगाल में हिंसा मारपीट कर मतदाताओं से आतंक पैदा करने की कोशिश की जा रही है लेकिन दो दिन पहले तो सारी हद़ें उस समय पार हो गई जबकि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष की रैली पर हमला कर दिया गया और वहाँ की पुलिस मूकदर्शक बनी रही।फलस्वरूप रैली बीच में ही स्थगित नहीं रूक गई बल्कि बंगाल के सुप्रसिद्ध समाज सुधारक समाजसेवी ईश्वरचन्द्र विद्यासागर की कालेज के अंदर लगी मूर्ति को भी तोड़ दिया गया।भाजपा का कहना है कि इसी कालेज के अंदर से टीएमसी कार्यकर्ताओं ने अमित शाह के रोड शो पर हमला किया था और मुर्ति को तोड़ दिया गया जबकि टीएमसी का कहना कि सबकुछ भाजपा द्वारा किया कराया गया है।

इसकी शिकायत कल चुनाव आयोग से की गई थी इसके बाद आयोग ने वहाँ पर निर्धारित समय से पहले चुनाव प्रचार पर प्रतिबंध लगाकर वहाँ के गृह सचिव एवं डीजीपी समेत कई जिम्मेदार लोगों को हटा दिया गया है। डरा धमका कर मतदाताओं को मताधिकार से वंचित करने का प्रयास करना, चुनाव जीतने के लिये हिंसा आगजनी एवं बदजूबानी करना लोकतांत्रिक संवैधानिक व्यवस्था की हत्या करने के प्रयास जैसा गंभीर अक्षम्य अपराध है।

धन्यवाद।।भूलचूक गलती माफ।।



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