आत्म हत्या....?

प्रदीप पाण्डेय

वर्तमान समय में आत्म हत्या की कुप्रवृत्ति बहुत ही तेजी से बढती जा रही है विषेशतया युवाओं में, जो एक अत्यंत चिन्ता जनक विषय है । आत्महत्या मनचाही मौत नहीं होती है यह अनचाही मौत होती है क्योंकि कोई मरना नहीं चाहता। कोई व्यक्ति एक पत्र लिख कर कि उसके पास और कोई विकल्प नहीं था वह आत्महत्या कर लेता है और फांसी के फन्दे से झुल जाता है । समझ में नहीं आता है यह कैसा और कौन सा हल या विकल्प है जो अपनों का भविष्य बर्बाद करता है। वह अपनी ईहलीला समाप्त कर लेता है, हम उसे मरा हुआ मान लेते हैं लेकिन वास्तव में वह मरता नहीं है, वह अपने विभिन्न रिश्तों में कभी न मिटने वाले घाव के रुप में जिन्दा रहता है । उसकी फटी हुयी आँखें माँ के फटे हुए कलेजे, टुटी हुयी गर्दन दुबारा कभी झंकृत न होने वाली पिता के टुटे हुए दिल, चेहरे पर सुखी आँसू की बुँदे आजीवन उसकी बहन के आँखों से बहने वाले आँसू, निस्प्राण हो कर झुलते उसके हाथ और पैर उसके भाई/मित्रों के हिम्मत को आजीवन तोडते हुए आजीवन जिन्दा रहता है । एक छोटे से आवेश के समय में लिया गया यह निष्ठुर निर्णय न जाने कितने लोगों को इस तथाकथित समाधान के लिए प्रेरित करता है । आत्महत्या करने वाला व्यक्ति तो एक बार मर जाता है लेकिन उसके मित्र, परिवारजन, रिश्तेदार पल पल खुद को अपराधी समझते हुए आजीवन पल पल मरते हैं। लगभग अस्सी प्रतिशत आत्महत्याएं छोटी मोटी विफलताओं का परिणाम होती हैं। मनोवैज्ञानिक और डाक्टरों के अनुसार यदि सही समय पर उन तक सही मार्गदर्शन, सहानुभूति पहुँच जाय तो उनकी जान बचायी जा सकती है, इन आत्महत्यों में अधिकांश स्पष्ट संकेतों के बाद होती हैं । हमारा यह नैतिक दायित्व बनता है कि हमारे आस पास जो मानसिक दबाव, मानसिक तनाव से ग्रसित व्यक्ति हैं उनकी बातें सुनें, उन पर विश्वास जतायें, उनका मनोबल बढायें, उनको समझायें यह कोई विकल्प नहीं है। आवेश में तो वह कहते हैं हम मर जायेंगे लेकिन हमें उन्हें समझाना होगा मरकर भी चैन न मिला तो कहाँ जायेंगे । आत्महत्या करने पर आमादा व्यक्ति को समझायें अपनी इस असफलता को छोड जीने का कोई और बहाना खोजें किसी की होठों की हँसी, किसी के उपकार को जीने का बहाना बनावें कोई बहाना न मिले तो बचपन में मास्टर जी की मार से बचने का नया नया बहाना खोजते थे उसी प्रकार जीने का कोई नया बहाना गढें । एक असफलता ही जीने का पैमाना नहीं है जीवन यहीं तक नहीं है, सचिन तेन्दुलकर,बिल गेट्स आदि लोग अपनी कालेज की परीक्षा में असफल रहे लेकिन वह अपने जीवन उत्कर्ष तक गये । अतः उन्हें हम समझाने का प्रयास करें कि छोटी मोटी असफलता को दिल से न लगायें, उन्हें समझायें किसी सपने के मर जानें से जीवन नहीं मरा करता है । हमारा एक छोटा सा प्रयास/कदम किसी का जीवन/किसी का परिवार बचा सकता है ।



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