वरमाला परम्परा पवित्र कार्य या मजाक

प्रदीप पाण्डेय

जयमाल(वरमाला)की परम्परा एक पवित्र कार्य है जो माता सीता के स्वयंवर या शायद उससे पहले से चला आ रहा है परन्तु वर्तमान समय में शादियों में ये बात काफी नजर आ रही है, कि शादी के समय स्टेज पर वरमाला के वक्त वर (दूल्हा) बड़ा तनकर खड़ा हो जाता है, जिससे दुल्हन को वरमाला डालने में काफी कठिनाई होती है, कभी कभी वर पक्ष के लोग दूल्हे को गोद में उठा लेते हैं, और फिर वधु(दुल्हन) पक्ष के लोग भी वधु को गोद में उठाकर जैसे तैसे वरमाला कार्यक्रम सम्पन्न करवा पाते हैं, आखिर ऐसा क्यों? क्या करना चाहते हैं हम? हम एक पवित्र संबंध जोड़ रहे हैं, या इस नये संबंध को मजाक बना रहे है, और अपनी जीवनसँगनी को सैकडों लोगो के बीच हम उपहास का पात्र बना रहे हैं, कोई प्रतिस्पर्धा नही हो रही है, हम किसी दंगल या अखाड़े का मैदान नही है, पवित्र मंडप है जहां देवी-देवताओं और पवित्र अग्नि का आवाहन होता है। हद तो तब हो जाती है जब हम जिस दुल्हन को मजाक बनाकर सैकड़ों लोगों के सामने बेपर्दा करते हैं घर ले जाने के बाद उसी से हम पर्दे में रहने की बात करते हैं और मजबूर करते हैं । विवाह एक पवित्र बंधन है, संस्कार है, कृपया इसको मजाक ना बनाएं। *यह मेरा निज विचार है वर्तमान आधुनिक समय और समाज में सम्भव है गलत हो।*



अन्य समाचार
फेसबुक पेज