एक पड़ाव हैं जिंदगी.?


विनीता दीक्षित

एक पड़ाव है
मेरी जिंदगी में मेरे सहनशक्ति का,
समय दर समय बीतते चले गए,
कैलेंडर बदलते - बदलते तारीखें चढ़ते चले गए,
जुड़ते गए लोग मुझे गिराने के लिए ,
पर मैं चट्टान की तरह खड़ी हूँँ
उसी पड़ाव पर नहीं दूंगी रास्ता
किसी को उस पड़ाव के आगे
क्योंकि वह सिर्फ मेरा है
और मेरा ही रहेगा.



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